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राग विहाग—तीन ताल
हमें प्रभु! दो ऐसा
वरदान।
तन-मन-धन अर्पण कर सारा, करें सदा गुण-गान॥
कभी न तुमसे कुछ भी चाहें, सुख-सम्पति-सम्मान।
अतुल भोग परलोक-लोकके खींच न पायें
ध्यान॥
हानि-लाभ, निन्दा-स्तुति सम हों, मान और अपमान।
सुख-दुख विजय-पराजय सम हों, बन्धन-मोक्ष समान॥
निरखें सदा माधुरी मूरति, निरुपम रसकी खान।
चरण-कमल-मकरन्द-सुधाका
करें प्रेमयुत पान॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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