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सौन्दर्य-लालसा 1

सौन्दर्य-लालसा मनकी सौन्दर्य-लालसा को दबाइये मत , उसे खूब बढ़ने दीजिये ; परंतु उसे लगाने की चेष्टा कीजिये परम सुन्दरतम पदार्थ में। जो सौंन्दर्य का परम अपरिमित निधि है , जिस सौन्दर्य-समुद्र के एक नन्हें-से कण को पाकर प्रकृति अभिमान के मारे फूल रही है और नित्य नये-नये असंख्य रूप धर-धरकर प्रकट होती और विश्व को विमुग्ध करती रहती है - आकाश का अप्रतिम सौन्दर्य , शीतल-मन्द-सुगन्ध वायु का सुख-स्पर्श-सौन्दर्य , अग्नि-जल-पृथ्वी का विचित्र सौन्दर्य , अनन्त विचित्र पुष्पों के विविध वर्ण और सौरभ का सौन्दर्य , विभिन्न पक्षियों के रंग-बिरंगे सुखकर स्वरूप और उनकी मधुर काकलीका सौन्दर्य , बालकों की हृदयहारिणी माधुरी , ललनाओं का ललित लावण्य तथा माता-पत्नि-मित्र आदि का मधुर स्नेह-सौन्दर्य- ये सभी एक साथ मिलकर भी जिस सौन्दर्य-सुधासागर के एक क्षुद्र सीकर की भी समता नहीं कर सकते , उस सौन्दर्यराशि को खोजिये। उसी के दर्शन की लालसा जगाइये , सारे अंगों में जगाइये। आपकी बुद्धि , आपका चित्त-मन , आपकी सारी इन्द्रियाँ , आपके शरीर के समस्त अंग-अवयव , आपका रोम-रोम उसके सुषमा-सौन्दर्य के लिये व्याकुल हो उठ

श्रीकृष्णदर्शन की साधना 2

श्रीकृष्णदर्शन की साधना श्री राधा-कृष्ण  हम लोग धन-संतान और मान-कीर्ति के लिये जितना जी-तोड़ परिश्रम और सच्चे मन से प्रयत्न करते हैं जितना छटपताते हैं उतना परमात्मा के लिये क्या अपने जीवनभर में कभी किसी दिन भी हमने प्रयत्न किया है या हम छटपटाते हैं ? तुच्छ धन-मान के लिये तो हम भटकते और रोते फिरते हैं ; क्या परमात्मा के लिये व्याकुल होकर सच्चे मन से हमने कभी एक भी आँसू गिराया है ? इस अवस्था में हम कैसे कह सकते हैं कि परमात्मा के दर्शन नहीं होते। हमारे मन में परमात्मा के दर्शन की लालसा ही कहाँ है। हमने तो अपना सारा मन अनित्य सांसारिक विषयों के कूड़े-कर्कट से भर रखा है। जोर की भूख या प्यास लगने पर क्या कभी कोई स्थिर रह सकता है ? परंतु हमारी भोग-लिप्सा और भगवान् के प्रति उदासीनता इस बात को सिद्ध करती है कि हम लोगों को भगवान् के लिय जोर की भूख या प्यास नहीं लगी। जिस दिन वह भूख लगेगी , उस दिन भगवान् को छोड़कर दूसरी कोई वस्तु हमें नहीं सुहायेगी।   उस दिन हमारा चित्त सब ओर से हटकर केवल उसी के चिन्तनमें तल्लीन हो जायेगा। जिस प्रकार विशाल साम्राज्य के प्राप्त हो जाने पर साधारण कौड

श्रीकृष्णदर्शन की साधना 1

श्रीकृष्णदर्शन की साधना एक गुजराती सज्जन निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर बड़ी उत्कण्ठा के साथ चाहते हैं। नाम प्रकाश न करने के लिये उन्होंने लिख दिया है , इसलिये उनका नाम प्रकाशित नहीं किया गया है , प्रश्नों की रक्षा करते हुए कुछ शब्द बदले गये हैं। कई महात्मा पुरुष कहते हैं कि इस समय ईश्वर दर्शन नहीं हो सकता। क्या यह बात मानने योग्य है ? यदि थोड़ी देर के लिये मान लें तो फिर भक्त तुलसीदास और नरसी मेहता आदि को इस कलियुग में उस श्याम सुन्दर की मनमोहिनी मूर्ति का दर्शन हुआ था , यह बात क्या असत्य है ?    जैसे आप मेरे सामने बैठे हो और मैं आपसे बातें कर रहा हूँ , क्या प्यारे कृष्णचन्द्र का इस प्रकार दर्शन होना सम्भव है ? यदि सम्भव है तो हमें क्या करना चाहिये कि जिससे हम उस मोहिनी मूर्ति को शीघ्र देख सकें ? जहाँ तक ये चर्म-चक्षु उस प्यारे को तृप्त होने तक नहीं देख सकेंगे ,  वहाँ तक ये किसी काम के नहीं हैं। नेत्रों को सार्थक करने का ‘सिद्ध-मार्ग’ कौन-सा है ,  वह बताइये।   कृष्णदर्शन की तीव्रतम विरहाग्नि हृदय में जल रही है , न जाने वह बाहर क्यों नहीं निकलती! इसी से मैं और भी घबरा र