सौन्दर्य-लालसा मनकी सौन्दर्य-लालसा को दबाइये मत , उसे खूब बढ़ने दीजिये ; परंतु उसे लगाने की चेष्टा कीजिये परम सुन्दरतम पदार्थ में। जो सौंन्दर्य का परम अपरिमित निधि है , जिस सौन्दर्य-समुद्र के एक नन्हें-से कण को पाकर प्रकृति अभिमान के मारे फूल रही है और नित्य नये-नये असंख्य रूप धर-धरकर प्रकट होती और विश्व को विमुग्ध करती रहती है - आकाश का अप्रतिम सौन्दर्य , शीतल-मन्द-सुगन्ध वायु का सुख-स्पर्श-सौन्दर्य , अग्नि-जल-पृथ्वी का विचित्र सौन्दर्य , अनन्त विचित्र पुष्पों के विविध वर्ण और सौरभ का सौन्दर्य , विभिन्न पक्षियों के रंग-बिरंगे सुखकर स्वरूप और उनकी मधुर काकलीका सौन्दर्य , बालकों की हृदयहारिणी माधुरी , ललनाओं का ललित लावण्य तथा माता-पत्नि-मित्र आदि का मधुर स्नेह-सौन्दर्य- ये सभी एक साथ मिलकर भी जिस सौन्दर्य-सुधासागर के एक क्षुद्र सीकर की भी समता नहीं कर सकते , उस सौन्दर्यराशि को खोजिये। उसी के दर्शन की लालसा जगाइये , सारे अंगों में जगाइये। आपकी बुद्धि , आपका चित्त-मन , आपकी सारी इन्द्रियाँ , आपके शरीर के समस्त अंग-अवयव , आपका रोम-रोम उसके सुषमा-सौन्दर्य के लिये व्याकुल हो उठ
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