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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

श्रीभगवन्नाम - 4 श्रद्धा पर एक दृष्टान्त

श्रद्धा पर एक दृष्टान्त एक समय शिवजी महाराज पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे। पार्वती ने देखा कि सहस्रों मनुष्य गंगा नहा-नहाकर हर-हर करते चले जा रहे हैं ;  परंतु प्रायः सभी दुःखों और पाप-परायण हैं। पार्वती ने बड़े आश्चर्य के साथ शिवजी से पूछा कि  ‘ हे देवदेव! गंगा में इतनी बार स्नान करनेपर भी इनके पाप और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ ?  क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रही ?’   शिवजी ने कहा- ’ प्रिये! गंगा में तो वही सामर्थ्य है ;  परंतु इन लोगों ने पाप नाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है तब इन्हें लाभ कैसे हो ?’  पार्वती ने साश्चर्य कहा कि  ‘ स्नान कैसे नहीं किया ?  सभी तो नहा-नहाकर आ रहे हैं ?  अभी तक उनका शरीर भी नहीं सूखे हैं। ’  शिवजी ने कहा—‘ये केवल जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं। तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊँगा। ’ दूसरे दिन बड़े जोर की बरसात होने लगी गलियाँ कीचड़ से भर गयी एक चौड़े रास्ते में एक गहरा गड्ढा था ,  चारों ओर लपटीला कीचड़ भर रहा था। शिवजी ने लीला से ही वृद्ध-रूप धारण कर लिया और दीन-विवश की तरह गड्ढे में जाकर ऐसे पड़ गये जैसे कोई मनुष्य चलता-चलता गड्ढे में गिर

श्रीभगवन्नाम -3 नाम-महिमा केवल रोचक वाक्य नहीं

नाम-महिमा केवल रोचक वाक्य नहीं — यह सर्वथा यथार्थ तत्व है। बड़े-बड़े ऋषियों और संत-महात्माओं ने नाम-महिमा का प्रत्यक्ष अनुभव करके ही उसके गुण गाये हैं। अब भी ऐसे लोग मिल सकते हैं जिन्हें नाम की प्रबल शक्ति का अनेक बार ,  अनेक तरहसे अनुभव हो चुका है। परन्तु वे लोग उन सब रहस्यों को अश्रद्धालु और नामापमानकारी लोगों के सामने कहना नहीं चाहते ,  क्योंकि यह भी एक नामका अपराध है— अश्रद्दधाने विमुखेऽप्यशृण्वति यश्चोपदेशः शिवनामापराध: । ' अश्रद्धालु ,  नाम विमुख और सुनना न चाहने वाले को नाम का उपदेश करना कल्याण रूप नाम का एक अपराध है। ' जो नाम के रसिक हैं ,  जिन्हें इसमें असली रसास्वाद का कभी अवसर प्राप्त हो गया है वे तो फिर दूसरी ओर भूलकर भी नहीं ताकते। न उन्हें शरीर की कुछ परवा रहती है और न जगत् की। मतवाले शराबी की तरह  नाम प्रेम में मस्त हुए वे कभी हँसते हैं ,  कभी रोते हैं ,  कभी गाते हैं ,  कभी नाचते हैं।   उनके लिये फिर कोई अपना-पराया नहीं रह जाता।  ऐसे ही प्रेमियों के सम्बन्ध में महात्मा सुन्दरदास जी लिखते हैं प्रेम लग्यो परमेश्वरसों तब भूलि गयो सिगरो घरबारा। ज्

श्रीभगवन्नाम 2 सब लोग नामपरायण क्यों नहीं होते?

सब लोग नामपरायण क्यों नहीं होते ? विशेष इसका उत्तर यह है कि नाम परायण होना जितना मुख से सहज कहा जाता है , वास्तव उतना सहज नहीं है। बड़े पुण्य बल से नाम में रुचि होती है। शास्त्र पढ़ना , उपदेश देना , बड़े-बड़े शास्त्रार्थ करना सही है ; परन्तु निश्चिन्त मन से विश्वास पूर्वक भगवान् का नाम लेना बड़ा कठिन है। जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं॥ कुछ लोग तो इसकी ओर ध्यान ही नहीं देते , जो कुछ ध्यान देते हैं उन्हें इसका सुकरत्व (सहजपन) देख कर अश्रद्धा हो जाती है। वे समझते हैं कि जब बड़े-बड़े यज्ञ , तप , दानादि सत्कर्मों से ही पाप वासना का नाश होकर मन की वृत्तियाँ शुद्ध और सात्त्विक नहीं बनतीं , तब केवल शब्दोच्चारण या शब्द स्मरण मात्र से क्या हो सकता है ? वे लोग इसे मामूली शब्द समझकर छोड़ देते हैं। कुछ लोग पण्डिताई के अभिमान से , शास्त्रों के बाह्य अवलोकन से केवल वाग्वितण्डार्थ शास्त्रार्थ पटु होकर नाम का आदर नहीं करते। पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त पुरुष तो प्रायः आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता माया मरीचिका में पड़कर ऐसी बातोंको केवल गपोड़ा ही समझते हैं। कुछ सुधार का दम भरने व

श्रीभगवन्नाम

श्रीभगवन्नाम पापानलस्य दीप्तस्य मा कुर्वन्तु भयं नराः। गोविन्दनाममेघौधैर्नश्यते नीरबिन्दुभिः॥ ( गरुडपुराण) ' हे मनुष्यो! प्रदीप्त पापाग्निको देखकर भय न करो ,  गोविन्दनामरूप मेघोंके के जलबिन्दु से इसका नाश हो जाएगा।" पापों से छूटकर परमात्मा के परम पद को प्राप्त करने के लिये शास्त्रों में अनेक उपाय बतलाये गये हैं। दयामय महर्षियों ने दुःख कातर जीवों के  कल्याणार्थ वेदों के आधार पर अनेक प्रकार की ऐसी विधियाँ बतलायी हैं ,  जिनका तथा अधिकार आचरण करने से जीव पाप मुक्त होकर सदा के लिये निरतिशयानन्द परमात्म सुख को प्राप्त कर सकता है। परंतु इस समय कलियुग है। जीवन की अवधि बहुत थोड़ी है। मनुष्य की आयु प्रतिदिन घट रही है।  आध्यात्मिक ,  आधिभौतिक और आधिदैविक तापों की वृद्धि हो रही है। भोगों की प्रबल लालसा ने प्रायः सभीको विवश और उन्मत्त बना रखा है। कामना के अशेष कलंक से बुद्धि पर कालिमा छा गयी है।  परिवार ,  कुटुम्ब ,  जाति या देश के नामपर होने वाली विविध भाँति की मोहमयी क्रियाओं के तीव्र धारा-प्रवाह में जगत् बह रहा  है। देश और उन्नति के नामपर धर्म ,  अहिंसा ,  सत्य और