प्रार्थनामें श्रद्धा-विश्वास
प्रार्थनामें श्रद्धा-विश्वास तो है ही,इनके बिना तो प्रार्थना होती ही नहीं,पर दो बातोंकी और आवश्यकता है-पहली इतना आर्तभाव,जो भगवान् को द्रवित कर दे और दूसरी, भगवान् की कृपालुतामें ऐसा परम विश्वास-कि प्रार्थना करनेमात्रकी देर है,प्रार्थना करते ही वह कृपालु माँ मुझे अपनी सुखद गोदमें ले ही लेगी।
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