{गत ब्लाग से आगे}
और पुकार कर कहें -
"हे हरे ! आपसे बढ़कर कोई परम दयालु नहीं है और मुझसे बढ़कर कोई सोचनीय नहीं है | यदुनाथ! ऐसा समझकर मुझ पामर के लिए जो उचित हो वह कीजिये |"
"भगवन ! आषाढ़ मास के दिन की भांति मेरे पाप बढ़ते चले जाते हैं , शरद ऋतुकी नदी के जल की तरह शारीरिक शक्ति क्षीण होती जा रही है , दुष्टों द्वारा किये हुए अपमान के सामान दुःख मेरे लिए दु:सह हो गए हैं | हाय ! मैं सब तरह से असमर्थ हूँ , अशरण हूँ , दयामय ! मुझपर कृपा कीजिये |"
"स्वामिन मैं अज्ञानी हूँ, मेरी बुद्धि मंद है , अत: मैं वैसी चिकनी चुपड़ी बातें नहीं कर सकता जिस से आपका कृपा पात्र बन सकूँ | मैं तो आर्त हूँ , अशरण हूँ , और दीन हूँ ; मैंने केवल क्रन्दन किया है | आप एस क्रन्दन पर ही ध्यान देकर शीघ्र दर्शन दीजिये | और मुझ भाग्य हीन के मस्तकपर अपने चरण रखिये |"
"हरे ! मुरारे ! प्रभो ! एक मात्र आप ही मेरे आश्रय हैं | मधुसुदन! वासुदेव ! विष्णो ! आपकी जय हो ! नाथ ! मुझसे निरंतर असंख्य पाप होते रहते हैं ; मुझे कहीं भी गति नहीं है | जगदीश ! मरी रक्षा कीजिये , रक्षा कीजिये |"
इस प्रकार सच्चे मन से रोकर, कातर पुकार करने से मंगलमय भगवान् अवश्य सुनते हैं |
"हे हरे ! आपसे बढ़कर कोई परम दयालु नहीं है और मुझसे बढ़कर कोई सोचनीय नहीं है | यदुनाथ! ऐसा समझकर मुझ पामर के लिए जो उचित हो वह कीजिये |"
"भगवन ! आषाढ़ मास के दिन की भांति मेरे पाप बढ़ते चले जाते हैं , शरद ऋतुकी नदी के जल की तरह शारीरिक शक्ति क्षीण होती जा रही है , दुष्टों द्वारा किये हुए अपमान के सामान दुःख मेरे लिए दु:सह हो गए हैं | हाय ! मैं सब तरह से असमर्थ हूँ , अशरण हूँ , दयामय ! मुझपर कृपा कीजिये |"
"स्वामिन मैं अज्ञानी हूँ, मेरी बुद्धि मंद है , अत: मैं वैसी चिकनी चुपड़ी बातें नहीं कर सकता जिस से आपका कृपा पात्र बन सकूँ | मैं तो आर्त हूँ , अशरण हूँ , और दीन हूँ ; मैंने केवल क्रन्दन किया है | आप एस क्रन्दन पर ही ध्यान देकर शीघ्र दर्शन दीजिये | और मुझ भाग्य हीन के मस्तकपर अपने चरण रखिये |"
"हरे ! मुरारे ! प्रभो ! एक मात्र आप ही मेरे आश्रय हैं | मधुसुदन! वासुदेव ! विष्णो ! आपकी जय हो ! नाथ ! मुझसे निरंतर असंख्य पाप होते रहते हैं ; मुझे कहीं भी गति नहीं है | जगदीश ! मरी रक्षा कीजिये , रक्षा कीजिये |"
इस प्रकार सच्चे मन से रोकर, कातर पुकार करने से मंगलमय भगवान् अवश्य सुनते हैं |
from- महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर् page- 35
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