बने रहें प्रभु एकमात्र मेरे जीवनके जीवन-धन।
प्राणों के प्रियतम वे मेरे, प्राणाधार, प्राण-साधन॥
स्वप्न-जागरणमें प्रमादसे भी न कभी हो भूल विभोर।
नहीं जाय मेरा मन उनको छोड़ कदापि दूसरी ओर॥
जैसा, जो कुछ भला-बुरा, सब रहे सदा प्रिय-सेवा-लीन।
रहे देह भी सदा एक प्रियकी पूजामें ही तल्लीन॥
पूजाकी बन शुचि सामग्री होते रहें नित्य सब धन्य।
रहूँ किसी भी स्थितिमें, कैसे भी, पर मानस रहे अनन्य॥
कुछ भी करें, रहे नित तन-मन-धन सबपर उनका अधिकार।
रस-चिन्तनमें लगा रहे मन, नित्य करे गुण-गान उदार॥
घुली-मिली मैं रहूँ नित्य प्रियतमसे, रहूँ दूर या पास।
बाहर-भीतर मेरे प्रियतम, करें सदा-सर्वत्र निवास॥
प्राणों के प्रियतम वे मेरे, प्राणाधार, प्राण-साधन॥
स्वप्न-जागरणमें प्रमादसे भी न कभी हो भूल विभोर।
नहीं जाय मेरा मन उनको छोड़ कदापि दूसरी ओर॥
जैसा, जो कुछ भला-बुरा, सब रहे सदा प्रिय-सेवा-लीन।
रहे देह भी सदा एक प्रियकी पूजामें ही तल्लीन॥
पूजाकी बन शुचि सामग्री होते रहें नित्य सब धन्य।
रहूँ किसी भी स्थितिमें, कैसे भी, पर मानस रहे अनन्य॥
कुछ भी करें, रहे नित तन-मन-धन सबपर उनका अधिकार।
रस-चिन्तनमें लगा रहे मन, नित्य करे गुण-गान उदार॥
घुली-मिली मैं रहूँ नित्य प्रियतमसे, रहूँ दूर या पास।
बाहर-भीतर मेरे प्रियतम, करें सदा-सर्वत्र निवास॥
PadhRatnakar 460
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