१. इस संसारमें सभी सरायके मुसाफिर हैं, थोड़ी देरके लिए एक जगह टिके हैं, सभीको समयपर यहाँसे चल देना है, घर-मकान किसीका नहीं है, फिर इनके लिए किसीसे लड़ना क्यों चाहिए ?
२. जगतमें जड कुछ भी नहीं है, हमारी जडवृत्ति ही हमें जड़के दर्शन करा रही है, असलमें तो जहाँ देखो, वहीं वह परम सुखस्वरूप नित्य चेतन भरा हुआ है! तुम-हम कोई उससे भिन्न नहीं! फिर दुःख क्यों पा रहे हो? सर्वदा-सर्वदा निजानन्दमें निमग्न रहो!
३. जहाँ गुणोंका साम्राज्य नहीं है वहीं चले जाओ! फिर निर्भय और निश्चिन्त हो जाओगे! ये गुण ही दु:खोंकी राशि हैं!
४. पराये पापोंके प्रायश्चित्तकी चिन्ता न करो, पहले अपने पापोंका प्रायश्चित्त करो!
५. किसीके दोषोको देखकर उससे घृणा न करो और न उसका बुरा चाहो! यदि ऐसा न करोगे तो उसका दोष तो न मालूम कब दूर होगा; पर तुम्हारे अपने अंदर घृणा, क्रोध, द्वेष और हिंसाको अवश्य ही स्थान मिल जायगा! उसमे तो एक ही दोष था; परंतु तुममें चार दोष आ जायेंगे! हो सकता है, तुम्हारे और उसके दोषोंके नाम अलग-अलग हों!