निर्दोष सत्यकार्यको किसी भय, संकोच या अल्प मतिके कारण कभी छोड़ना नहीं चाहिये ! कार्यकी निर्दोषता,उसकी उपकारिता और तुम्हारी श्रद्धा, नेकनीयत तथा टेकके प्रभावसे आज नहीं तो कुछ समय बाद लोग उस कार्यको जरुर अच्छा समझेंगे !
याद रखना चाहिये कि संसारके सुखोंकी अपेक्षा परमात्मसुख अतयन्त विलक्षण है, अतः संसार-सुखके लिये परमात्मसुखकी चेष्टामें कभी बाधा नहीं पहुँचानी चाहिये !
कर्त्तव्यमें प्रमाद न करना ही सफलताकी कुंजी है और उसीपर परमात्माकी कृपा होती है, आलसी और कर्तव्यविमुख लोग उसके योग्य नहीं !
किसीके मुँहसे कोई बात अपने विरूद्ध सुनते ही उसे अपना विरोधी मत मान बैठो, विरोधका कारण ढूँढो और उसे मिटानेकी सच्चे हृदयसे चेष्टा करो! हो सकता है तुमसे ही कोई दोष हो जो तुम्हें अबतक न दिख पड़ा हो अथवा वह ही बिना बुरी नियतके ही किसी परिस्थितिके प्रवाहमें बह गया हो ! ऐसी स्थितिमें शान्ति और प्रेमसे काम लेना चाहिये !
अपने हृदयको सदा टटोलते रहना ही साधकका कर्त्तव्य है, उसमें घृणा, द्वेष, हिंसा,वैर,मान-अहंकार , कामना आदि अपना डेरा न जमा लें ! बुरा कहलाना अच्छा है; परन्तु अच्छा कहलाकर बुरा बने रहना बहुत ही बुरा है !