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उसके प्रति द्वेष कभी न करो! द्वेष करोगे तो तुम्हारे मनमें वैर, हिंसा आदि अनेक नये -नये पापोंके संस्कार पैदा हो जायँगे, उसका मन भी शुद्ध नहीं रहेगा, उसमें पहले वैर न रहा होगा तो अब तुम्हारे असद्व्यव्हारसे पैदा हो जायगा! द्वेषाग्निसे दोनोंका ह्रदय जलेगा, वैर-भावना परस्पर दोनोंको दु:खी करेगी और पापमें डालेगी ! अतएव इस बातको सर्वथा भूल जाओ की अमुकने कभी मेरा कोई अनिष्ट किया है
पापी मनुष्य ही अपने पापोंका दोष हल्का करने या पापोंमें प्रवृत्त होनेके लिये शास्त्रोंका मनमाना अर्थ कर उससे अपना मनोरथ सिद्ध किया चाहते हैं ! भगवान् श्रीकृष्णमें कलंक नहीं है, पापियोंकी पापवासना ही उनमें कलंकका आरोप करती है !
श्रीकृष्णका उदाहरण देकर पाप करनेवाले ही कलंकी हैं, श्रीकृष्णका निर्मल चरित्र तो नित्य ही निष्कलंक है !