पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी, वि.सं.-२०६८, गुरुवार
भोगोंमें वैराग्य करो, वैराग्यके लिये चार बातें आवश्यक हैं --- जगतमें रमणीयता, सुख, स्नेह और सत्ताका त्याग! परमात्मामें राग करो, उसमें ये चारों बातें पूर्ण हैं, इनका अनुभव करो !
कुसंगसे सदा बचना चाहिये और सत्संगका आश्रय लेना चाहिये ! विषयी पुरुषोंका संग तो बहुत ही हानिकर है! चेतनकी तो बात ही क्या है, मनको लुभानेवाली और इन्द्रियोंको आकर्षित करनेवाली जड़ भोग्य वस्तुओंका संग भी त्याज्य है !
ईश्वरके विरोधकी बात कभी भूलकर भी न कहनी चाहिये, न सुननी चाहिये, यह सबसे बड़ा अपराध है!
मनसे राग-द्वेषको निकालकर अनासक्तभावसे इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंका भोग करना चाहिये, न कि राग-द्वेषयुक्त होकर तथा इन्द्रियोंके गुलाम बनकर, इन्द्रियोंको गुलाम बनाकर उनसे काम लो! उनके गुलाम बनकर उनके कहनेमें न चलो!
साधकके लिये सबसे बड़ा प्रतिबन्धक कीर्तिकी चाह है ! धन और स्त्रीका छोड़ना सहज है; परन्तु कीर्तिका लोभ छोड़ना बहुत ही मुश्किल है !