सुख तुम्हारे मनमें है न कि किसी कार्य या वस्तुविशेषमें, चित्त शान्त है तो सुख है, नहीं तो दुःख -ही-दुःख है! चित्तकी शान्तिके लिये जगतकी कामनाओंका त्याग जरूरी है!
जो कुछ भी कार्य करो, भगवान् की सेवा समझकर उन्हींके लिये करो, दयानिधान प्रभुकी अपने ऊपर परम कृपा समझो, उनकी कृपा पर पूर्ण विश्वास रखो और तुम्हारे कार्य का जो कुछ भी परिणाम हो, उसे मंगलमय भगवान् की इच्छा समझकर आनंदसे सिर चढ़ाओ !
जीवन बिता जा रहा है, हम पल-पलमें मृत्युकी और बढ़ रहे हैं,बहुत ही जल्दी जीवन ख़त्म होगा, यह समझकर अगली यात्राके लिये यहाँका काम निपटाकर सदा कमर कसे तैयार रहो! जगतकी आसक्ति सर्वथा त्यागकर परमात्मासे मिलनेकी तीव्र इच्छा करना ही कमर कसकर तैयार होना है!
जगतमें नाटकके पात्रकी तरह रहो, अपना पार्ट पूरा करनेमें कभी चुको मत और किसी भी पदार्थको कभी अपना समझो मत! पार्ट करनेमें चूकना नमकहरामी और किसीको अपना मानना बेईमानी है! समझो नाटक, परन्तु लोकदृष्टिमें अभिनय करो सत्य-सा समझकर ही!