माघ कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०६८, गुरुवार
प्रभुके चिन्तनमें चित्त रखो, उसकी प्रत्येक देनको सिर चढ़ाकर आनंदसे स्वीकार करो, उसकी हरेक आज्ञाका हृदयसे पालन करो और उसपर अनन्य निर्भर होकर माँगनेकी वासनाको ही त्याग दो !
उससे माँगना ही ठगाना है! कारण, वह परम सुहद् भगवान् हमारा जितना हित सोच सकता है, उतना सोचनेके लिये हमारी बुद्धि कभी समर्थ ही नहीं है!
एक दिन अवश्य मर जाना है, इस बातको भूलो मत, मृत्युके भयानक दृश्यको याद रखो, मरते हुए मनुष्यके शरीरकी घृणित दशाका स्मरण करो, उसके दुःखसे भरे हुए निराश नेत्रोंकी भयानकताका ध्यान करो, एक दिन तुम्हारी भी यही दशा होनेवाली है !
मृत्युकी भीषणतासे एक बार भय होगा, विषद होगा, जगत् में अन्धकार दिखेगा, निराशा होगी; पर इससे घबराओ मत, यह निराशा ही तुम्हारे परम सुखका कारण होगी, इसीमें तुम परमात्माकी झाँकी कर सकोगे! ' नैराश्यं परमं सुखम् !
भगवान् पर कभी अविश्वास न करो, यह सबसे बड़ा पाप है! भगवान् के नामपर विश्वास रखो! याद रखो, नामके बारेमें संतोंका एक-एक वचन सच्चा है! नामकी शरण लेकर परीक्षा कर देखो!
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