मौनी एवं सोमवती अमावस्या, वि.सं.-२०६८, सोमवार
साधकका आदर्श त्यागी है, भोगी नहीं! इसीसे साधक भोगीद्वारा प्रलोभन दिये जानेपर भी भोगोंको स्वीकार नहीं करता!
वृन्दावनवासका बड़ा माहात्म्य है, पर वृन्दावनमें केवल रहना वृन्दावनवास नहीं है; वृन्दावनवासका अर्थ है -- जीवनका श्रीकृष्णमय हो जाना!
पर्देपर चित्रित गहनोंको देखकर उसके प्रति आसक्ति, प्रलोभन नहीं जागता! यह संसार, यहाँके भोग-पदार्थ पर्देपर गहने हैं -- यह प्रतीति हो जाय तो स्वाभाविक ही इनके प्रति आसक्ति -उपेक्षा हो जायगी!
भगवान् पर हमारा विश्वास दृढ़ हुआ कि नहीं, इसकी कसौटी है -- भगवान् के प्रत्येक विधानमें मंगलबुद्धि हुई कि नहीं तथा दुःखमें भगवान् का संस्पर्श अनुभव होता है कि नहीं! जबतक भगवान् के किसी भी विधानसे मनपर विषाद-चिन्ता आती है, तबतक यह स्पष्ट है कि हमारा भगवान् पर विश्वास दृढ़ नहीं हुआ है!
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