प्रेमी भक्त उद्धव :.........गत ब्लॉग से आगे ...
मथुराके यदुवंशियोंमें वासुदेवके सगे भाई देवभाग बहुत ही प्रसिद्ध थे! वे भगवान् के भक्त थे, देवता और ब्राम्हणोंके उपासक थे, संतोंपर उनकी अपार श्रद्धा थी और उनकी धर्मपत्नी भी उन्हींके अनुकूल आचरण करनेवाली सती साध्वी थीं! जिन दीनों भगवान् श्रीकृष्ण मथुरामें अवतीर्ण हुए,उन्हीं दीनों इन दम्पतिके गर्भसे उद्धवका जन्म हुआ! उद्धव भगवान् के नित्य पार्षद हैं! जब भगवान् मथुरामें आये तब वे कैसे न आते? वे आये जबतक रहे, भगवान् की सेवामें लगे रहे! उनके मनमें दूसरी कोई इच्छा ही नहीं थी, यंत्रकी भाँती भगवान् की इच्छाका पालन करते थे!
बचपनमें ही ये भगवान् के परमभक्त थे! खेलमें भी भगवान् के ही खेल खेलते! किसी पेड़के नीचे भगवान् की मिट्टीकी मूर्ति बना लेते! यमुनामें स्नान कर आते! लताओंसे सुन्दर-सुन्दर फूल तोड़ लाते! फलोंसे भगवान् को भोग लगाते और उनकी पूजामें इतने तल्लीन हो जाते कि शारीरकी सुधि नहीं रहती! कभी उनके नामोंका कीर्तन करते , कभी उनके गुणोंका गायन करते और कभी उनकी लीलाओंके चिंतनमें मस्त हो जाते! सारा दिन बीत जाता, उन्हें भोजनकी याद भी नहीं आती! माता बुलाने जातीं - 'बेटा! देर हो रही है, चलो कलेवा कर लो! भोजन ठंडा हो रहा है, दिन बीत गया, क्या तुम मेरी बात ही नहीं सुनते! आओ लल्ला! में तुम्हें अपनी गोदमें उठाकर ले चलूँ, अपने हाथोंसे खिलाऊँ !' परन्तु उद्धव सुनते ही नहीं, भगवान् की पूजामें तन्मय रहते! कभी सुनते भी तो तोतली जबानसे कह देते -- ' माँ, अभी तो मेरी पूजा ही पूरी नहीं हुई है, मेरे भगवान् ने अभी खाया ही नहीं, में कैसे चलूँ? में कैसे खाऊँ? पांच बरसकी अवस्थामें उद्धवकी यह भक्तिनिष्ठा देखकर माता चकित रह जाती! पूजा पूरी हो जानेपर प्रेमसे गोदमें उठा ले जाती और खिलाती- पिलाती!
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