जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

बुधवार, फ़रवरी 29, 2012

प्रेमी भक्त उद्धव




प्रेमी भक्त उद्धव :......गत ब्लॉग से आगे... 

क्रमशः उद्धव आठ बरसके हुए! यज्ञोपवीत-संसकार हुआ! विद्याध्ययन करनेके  लिये गुरुकुलमें गए! साधारण गुरुकुलमें नहीं, देवताओंके गुरुकुलमें, देवताओंके पुरोहित आचार्य बृहस्पतिके पास! सम्पूर्ण विद्याओंका रहस्य प्राप्त करते इन्हें विलम्ब नहीं हुआ! सम्पूर्ण विद्याओंका रहस्य है -- भगवान् से प्रेम! वह इन्हें प्राप्त था ही! अब उसको समझनेमें क्या विलम्ब होता! वास्तवमें जिनकी बुद्धि सुद्ध है;जपसे,तपसे,भजनसे जिन्होंने अपने मस्तिष्क को साफ़ कर लिया है, सभी बाते उनकी समझमें शीघ्र ही आ जाती हैं! यह देखा गया है की सन्ध्या न करनेवालोंकी अपेक्षा सन्ध्या करनेवाले विद्यार्थी अधिक समझदार होते हैं! भगवान् सविता उनकी बुद्धि सुद्ध कर देते हैं! उद्धवमें भगवान् की भक्ति थी, साधना थी, वे बृहस्पतिसे बुद्धिसम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञातव्योंका ज्ञान प्राप्त करके उनकी अनुमतिसे मथुरा लौट आये! 

मथुरामें  उनका बड़ा ही सम्मान था! सब लोग उनके ज्ञानके, उनकी नीतिके और उनकी मन्त्रणाके कायल थे! यदुवंशियोंमें जब कोई काम करनेमें मतभेद होता, कोई उलझन सामने आ जाती, उनसे कोई समस्या हल न होती तो वे उद्धवके पास जाते और उद्धव बड़ी ही योग्यताके साथ उलझनोंको सुलझा देते, सारी समस्याको हल कर देते! सब उनकी बुद्धिपर, उनके शास्त्रज्ञानपर लट्टू थे, उनका पूरा विश्वास करते थे! और वे भी सबकी सेवा करते हुए, सबका हित करते हुए कंसकी दुर्नीतियोंसे लोगोंको बचाते हुए भगवान् के भजनमें तल्लीन रहते थे! 


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