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प्रेमी भक्त उद्धव




प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे... 


श्रीकृष्णने अपने परम प्रेमी सखा उद्धवको एकांतमें ले जाकर उनका हाथ अपने हाथमें लेकर बड़े ही प्रेमसे कहा! उस समय श्रीकृष्णके मुखमण्डलपर करुनाका संचार हो गया था! उनकी आँखें प्रेमसे भरी हुई थीं! उन्होंने उद्धवसे कहा -' प्यारे उद्धव! तुम्हें मेरा एक काम करना होगा! यह काम केवल तुम्हारे ही करनेयोग्य है! तुम व्रजमें जाओ! वहाँ मेरे सच्चे माता-पिता रहते हैं! मैं उनकी गोदमें खेलता था, वे दुलारके साथ मुझे अपने हाथों खिलाते थे, आँखोंकी पुतलीकी भाँती मुझे जोगवते ही उनका सारा समय बीतता था! यदि मेरे कलेवा करनेमें तनिक भी देर हो जाती थी तो वे छटपटा उठते थे! मैं हठ करके गौओंको चराने चला जाता था तो दिनभर उनकी आँखें वनकी ही और लगी रहती थीं! मेरे बिना उनका जीवन भार हो गया होगा! मक्खन-मिश्री देखकर उन्हें मेरी याद आती होगी, बाँसुरी देखकर वे बेसुध हो जाते होंगे, मेरी प्यारी गौएँ जब मुझे ढूँढती  हुई -सी इधर -उधर भटकती होगीं, तब उनका कलेजा फटने लगता होगा! उन्हें केवल तुम्हीं सांत्वना दे सकते हो! मेरे ह्रदयकी बात जाननेवाले  उद्धव! उन्हें प्रसन्न करनेकी क्षमता केवल तुममें ही है! 

'मेरी गोपियाँ हैं, उन्हें मेरे वियोगका कितना दुःख है, वे मेरे लिये बिना पानीकी मछलीकी भाँती किस प्रकार तडफड़ा रही होंगी, इसका अनुमान और वर्णन नहीं किया जा सकता! उद्धव! मैंने कई बार एकांतमें तुमसे उनकी चर्चा की है! उन्होंने अपना सर्वस्व मुझे समर्पित कर दिया है, उनका जीवन मेरी प्रसन्नताके लिये है! उन्होंने अपनी आत्मा, अपना ह्रदय मुझे दे दिया हैं! वे मुझे सोचा करती हैं, मन-ही-मन मेरी सेवाकी भावना करके अपना समय बिताया करती हैं! उन्होंने अपने प्राणोंको मेरे प्राणोंमें मिला दिया है और उन सब कामोंको छोड़दिया है जो मेरी प्रीतिके बाधक हैं! और तो क्या , उन्होंने मेरे लिये दुस्त्यज स्वजन और दुस्त्याज आर्यपथका त्याग कर दिया है! वे मुझे ही अपना प्रियतम समझती हैं, मेरे विरहमें उनकी आत्मा छटपटा रही होगी! वे विरहसे, उत्कंठासे विह्वल हो रही होंगी! उन्हें यमुना देखकर मेरे जल- विहारकी याद आती होगी, लता-कुंज और वन -वीथियोंको देखकर उन्हें मेरी रहस्य -क्रीडाका ध्यान आ जाता होगा! कहाँतक कहूँ! व्रजकी एक-एक वस्तु वहाँका एक-एक  अणु, एक -एक परमाणु उन्हें मेरी याद दिलाकर बड़ी व्यथा देता होगा! उद्धव ! तुम निश्चय समझो, वे आँख उठाकर उनकी और देखतीतक नहीं, अबतक उन्होंने प्राणत्याग कर दिया होता यदि पुनः उन्हें मेरे व्रजमें जानेकी आशा नहीं होती! वे मेरी गोपियाँ हैं, उनकी आत्मा मेरी आत्मा है! वे बड़े कष्ट से जीवित रह रही हैं! जाओ, तुम उन्हें मेरा सन्देश सुनाओ और समझा -बुझाकर किसी प्रकार उनकी विरह- व्याधि कुछ कम करनेकी चेष्टा करो!  

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