फाल्गुन शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०६८, शनिवार
प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे....
'मेरे वे सखा, मेरे संगी, जिनके साथ मैं खेलता था, जिनसे मेरा ऊँच-नीचका तनिक भी व्यवहार नहीं था, जो घुल-मिलकर मुझसे एक हो गये थे, आज भी गौओंको लेकर जंगलमें चराने आते होंगे! और दिनभर टकटकी लगाकर मथुराकी और देखते रहते होंगे! उद्धव! वे मेरे जीवन-सखा हैं! सहचर हैं! मेरी लीलाके सहकारी हैं! उनके साथ मैं जंगलमें खता था! वे अपने घरसे अच्छी-अच्छी चीजें ला-लाकर पहले मुझे खिलाया करते थे! गौएँ दूर चली जाती तो वे मुझे नहीं जाने देते, स्वयं ही जाकर हाँक लाते थे! उनपर तनिक सी भी आपत्ति आती तो वे मुझे पुकारने लगते, सच्चे ह्रदय से पुकारते! ब्रह्मा उन्हें हर ले गये! मैंने वर्षभरतक उनका रूप धारण किया! ब्रह्मा छक गये! इन्द्र ने उनका अनिष्ट करना चाहा, मैंने सात दिनोंतक अपनी ऊँगलीपर गौवर्धन उठा रखा! उनके साथ मैं उछलता था, कूदता था, खेलता था, उनकी स्मृति मुझे रह -रहकर आया करती है! तुम जाओ! उन्हें केवल तुम्हीं समझा सकते हो!
'मेरी गौएँ हैं! मैं जब उनके पीछे -पीछे चलता था तो वे सर घुमा-घुमाकर मुझे देख लिया करती थीं! जब मैं बाँसुरीमें उनका नाम लेकर पुकारता तब वे चाहे कहीं भी होतीं, मेरे पास दौड़ चली आतीं! जब मैं उनकी ललरियोंको सहलाने लगता, तब वे अपना सिर उठाकर प्रेमसे मुझे देखा करतीं और उनके थनोंसे दूध गिरने लगता था! जब मैं बाँसुरी बजाता, तब मुझे घेरकर खड़ी हो जातीं और उनके मुँहमें जो घास होती, उसे उगलना और निगलना भी भूल जातीं! उस दिन जब मैं कालिय- कुण्डमें कूद गया था, तब वे सब मेरे पीछे उसमें घुसने जा रही थीं! वे बड़े बलसे रोकी जा सकीं और जबतक मैं निकला नहीं, तबतक किनारे खड़ी होकर रोती तथा रँभाती रहीं! वे अब मुझे न देखकर कितनी पीड़ित, कितनी व्यथित होंगी? उद्धव! वे तुम्हें देखकर कुछ सान्त्वना प्राप्त करेंगी! मेरी ही -जैसी आकृति और मेरे ही -जैसे वस्त्रोंको देखकर वे तुमसे प्रेम करेंगी और जब तुम उन्हें सहलाओगे तब वे प्रसन्नता -लाभ करेंगी!'
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