सभी भक्तों को होली की शुभकामनाएँ
फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०६८, बुधवार
प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे....
श्रीदामाने कहा -- 'क्या श्रीकृष्ण इतने निर्मोही हो गये? परन्तु ऐसी सम्भावना नहीं है! उनका ह्रदय बड़ा कोमल है! वे जब गौओंको चराकर लौटते थे, रातमें हमलोग अपने घर चले जाते थे और वे अपनी माँके पास जाकर सोते थे तब रातमें भी वे हमारे लिये छटपटाया करते थे! स्वप्नमें भी हमारा नाम लेकर पुकारा करते थे! प्रातः काल होते ही हमलोगोंके पास आनेके लिये उतावले हो उठते थे! यदि माँ यशोदा सावधान न रहतीं तो वे बिना कुछ खाये-पिये हमलोगोंके पास दौड़ आते थे! दिनभर हमारे साथ खेलते थे, खाते थे,हमें तनिक भी कष्ट नहीं होने देते थे! वे ही हमारे श्रीकृष्ण, वही हमारा कन्हैया मथुरामें जाकर इतना निष्ठुर हो गया! यह कैसे सोचें,कैसे समझें, कैसे विश्वास करें?'
'उद्धव! तुम कहते हो की एक-न -एक दिन वे हमें अवश्य मिलेंगे! परन्तु तुम जानते नहीं की उनके बिना एक क्षण युगके समान, एक घड़ी मन्वन्तरके समान,एक पहर कल्पके समान और एक दिन द्वीपरार्धके समान व्यतीत होता है! हम एक क्षण भी उन्हें नहीं भूल सकते! जब वे हमारे साथ खेलते थे, तब दिन-का-दिन पलक मारते बीत जाता था! आज उनके बिना हमारा जीवन भार हो गया है! सारा संसार शून्य -सरीखा मालुम होता है! वे ही वन हैं, वे ही वृक्ष-लताएँ है, जिनके निचे कोमल कोंपलोंकी शय्यापर श्रीकृष्ण लेट जाते थे, हम बड़े-बड़े पत्तोंसे हवा करके उनके श्रमबिंदु सुखाते थे! उनके चरण-कमलोंको अपनी गोदमें लेकर अपने ह्रदयसे सटाते थे! उनके हाथ अपने हाथमें लेकर दिव्य सुखका अनुभव करते थे! वही यमुना है जिसमें हमलोग घण्टों जलक्रीडा करते थे! वही व्रजभूमि है जिसमें हमलोग लोटते थे! परन्तु वही सब रहनेसे क्या हुआ, श्रीकृष्णके बिना सब काटने दौड़ता हैं, उनकी और आँखें उठाकर देखातक नहीं जाता! उद्धव! हुम सत्य कहते हैं, हमारी पीड़ा तब और भी बढ़ जाती है जब ये गौएँ रँभाती हुई अपना सिर उठाकर मथुराकी और देखती हैं! ये बछड़े जब किसीको दुरसे आते देखते हैं तो अपनी माँका दूद पीना छोड़कर मानो श्रीकृष्ण ही आ रहे हों, इस भावसे उधर देखने लगते हैं! यदि हमें उनके आनेकी आशा न होती तो अबतक हमारे प्राण न रहते!'
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