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प्रेमी भक्त उद्धव






                         फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, वि.सं.-२०६८, गुरुवार

प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे....
इन ग्वालबालोंका प्रेम देखकर उद्धव तो मुग्ध हो रहे थे! वे पुनः रथपर सवार नहीं हुए! ग्वालबालोंके साथ ही बातचीत करते हुए व्रजकी दशा* देखते हुए नंदबाबाके दरवाजेके पास आ पहुँचे! ग्वालबाल दुसरे दिन मिलनेकी बात कहकर अपनी गौओंको ले-लेकर अपने-अपने घर चले गये! उद्धवने जाकर नंदबाबाको प्रणाम किया! नंदबाबाने उठकर उन्हें हृदयसे लगा लिया और बड़ी प्रसन्नतासे, बड़े प्रेमसे उन्हें साक्षात श्री कृष्ण समझकर उनका सत्कार किया! जब वे नित्य-कृत्य और भोजन-भजनसे निवृत्त हुए तथा प्रसन्न होकर आसनपर बैठे तब नंदबाबाने बड़े प्रेमसे उनके पास बैठकर मथुराका कुशल-समाचार पूछा! नंदबाबाने कहा - 'उद्धव! मेरे प्रिय बंधू वासुदेव कुशलसे हैं न? उनके पुत्र, मित्र, भाई, बंधू सब प्रसन्न हैं न? बहुत दुःखके बाद उन्हें सुखके दिन देखनेको मिले हैं, यह भगवान् की बड़ी कृपा है! पापी कंस पापके परिणामस्वरूप अपने साथियोंके साथ मारा गया! वह धार्मिक यदुवाशियोंसे बड़ा ही द्वेष रखता था! अब तो सब लोग स्वतंत्रासे धर्माचरण कर पाते हैं न?'

नन्दने आगे कहा -- 'उद्धव! क्या श्रीकृष्ण कभी अपनी माँका स्मरण करते हैं? क्या वे अपने साथ खेलनेवाले ग्वालबालोंको भूल गये? क्या वे अपनी प्यारी गौओंको कभी स्मरण नही करते? उनके ही आने की आशासे जीवित रहनेवाले व्रजवासियोंको क्या वे भूल सकेंगे? वृन्दावन, यमुना, गोवर्धन आज भी उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं! गोवर्धन सिर उठाकर उनका मार्ग देख रहा है! वृन्दावन और यमुना उनके विरहमें सूखते जा रहे हैं! उद्धव! क्या सचमुच वे आयेंगे? क्या उनका सुन्दर मुखड़ा, उनकी तोतेकी ठोर-सी नाक, उनकी मुस्कान और उनकी चितवनका आनंद मेरी इन आँखोंको प्राप्त हो सकेगा? 


*                            कुंजनमें भौंरपुंज गुंजरत स्याम स्याम,  
                                      बोलत बिहंग त्यों कुरंग स्याम नाम है!
                        धेनु तृन मुख धरि स्यामई पुकारती हैं,        
                                   जमुना-तरंग सोर स्याम सब जाम है!!
बैठतमें बागतमें सोवतमें जागतमें,         
                स्याम-रट लागत न रागत बिराम है! 
कृष्णचन्द्र बिरह मवासी व्रजबासी सबै,       
           'रघुराज' हेरी रहे स्याम स्याम स्याम है!!

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