चैत्र कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०६८, मंगलवार
प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे....
यमुना -किनारे जाती हूँ, घण्टों बैठकर उसकी लहरियाँ गिनती रहती हूँ! ऐसा मालूम पड़ता है कि इसी नीले जलमें वह कहीं छिपा होगा परन्तु जब घण्टों नहीं निकलता तो आँखोंपर बड़ा क्रोध आता है! मैं अपने हाथोंसे ही इन आँखोंको फोड़ डालती, अपने श्यामसुन्दरके अतिरिक्त और किसीको देखना ही क्या है परन्तु उसीको देखनेकी लालसासे इन्हें बचा रखा है! क्या कभी मेरी अभिलाषा पूरी होगी, क्या दो दिनके लिए भी वह मेरे पास आवेगा? क्या मैं फिर उसे अपनी गोदमें ले सकूँगी? उद्धव! क्या मेरा जीवन, मेरी आँखें कभी सफल हो सकेंगी?'
यशोदाकी आँखोंसे झर-झर आँसूके निर्झर बह रहे थे! उनका गला भर आया, वे चुप होकर उद्धवकी और देखने लगी! नन्द और यशोदाके इस अलौकिक प्रेमको देखकर उद्धव अवाक् हो गये! उनसे कुछ बोला नहीं गया! उद्धवमें शांत भक्ति पहलेसे ही थी, दास्यभाव भी था, सख्यका भी कुछ अंकुर उग आया था; उनकी ऐसीही मानसिक स्थितिमें श्रीकृष्णने उन्हें वृन्दावन भेजा था! वृन्दावनमें प्रवेश करते ही उद्धवको सख्य-रसकी पूर्णता प्राप्त हुई! श्रीदामा आदि गोपोंसे मिलकर उन्होंने जाना कि सख्य -रसकी पूर्णता क्या है? व्रजमें प्रवेश करनेपर उन्होंने देखा, व्रजके घर -घरमें, वन-वनमें, वहाँके पशु-पक्षी-मनुष्य सभी श्रीकृष्णका गुणानुवाद गा रहे हैं! वहाँके एक-एक अणुसे श्रीकृष्णके नामकि ध्वनि निकल रही थी! नन्द और यशोदाके पास आकर उन्होंने वात्सल्य -रसका दर्शन किया! उनकी समझमें ही नहीं आता था कि इन्हें क्या समझावें, इनसे क्या कहें? अन्तमें उन्होंने सोचा कि इन्हें श्रीकृष्णका ऐश्वर्य सुनाना चाहिये! वे कहने लगे ! अबतक नंदबाबा भी संभलकर बैठ गए थे!
उद्धवने कहा --'बाबा नन्द! माँ यशोदा! आपलोग धन्य हैं! आपका जीवन सफल है! यदि मेरे रोम-रोम जीभ बन जायँ तो भी मैं आपकी पूरी प्रशंसा नहीं कर सकता! परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्णमें -क्षरक्षरातीत पुरुषोत्तममें आपलोगोंका इतना सुन्दर भाव है, आपकी ऐसी भक्ति है, इसकी महिमा कौन गावे? तीर्थयात्रा, तपस्या, दान,ज्ञान और समाधिसे जिस वस्तुकी प्राप्ति कि जाती है, वह प्रेमलक्षण भक्ति आपको स्वयं ही प्राप्त हो गयी है! श्रीकृष्ण केवल आपके बालक ही नहीं हैं! वे सम्पूर्ण पिताओंके पिता हैं! वे संसारके मूल कारण हैं! बलराम उन्हींकी शक्ति हैं! उन्हींकी प्रेरणासे संसारमें ज्ञान होता है और सब वस्तुएँ चेष्टा करती हैं! कोई भी प्राणी मृत्युके समय एक क्षण भी उनका चिंतन कर ले तो उसके सारे कर्म धुल जाते हैं और वह ब्रह्मा -स्वरुपको प्राप्त हो जाता हैं! आपलोगोंका उनसे सम्बन्ध तो है ही, उन्हें केवल अपना पुत्र न समझें, उन्हें सबका कारण, सबकी आत्मा समझें! यदि आप ऐसा कर सकेंगे तो फिर आपका कोई कर्तव्य शेष नहीं रहेगा! '
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