चैत्र कृष्ण अमावस्या, वि.सं.-२०६८, गुरुवार
प्रेमी भक्त उद्धव: गत ब्लॉग से आगे.....
हम यमुनाका जल लानेका, दही बेचनेका और भी किसी काम-काजका बहाना बनाकर कई बार वनमें जातीं और उन्हें देख आतीं! जब वे शामको लौटते, हम पहलेसे ही रास्तेपर खड़ी होतीं और उनका मार्ग देखा करती! वे जब बाँसुरी बजाते हुए ग्वालबालोंके साथ लौटते थे, उनके घुँघराले काले केशोंपर व्रजराज पड़ी होती थी, उनके कपोलोंपर श्रमबिंदु उग आये होते थे तो देखकर हमें कितनी प्रसन्नता होती, कितना आनंद होता, कह नहीं सकतीं! हम रातमें भी नंदबाबाके घर जातीं! वे बाँसुरी बजाकर हमें वन में बुलाते, हमारे साथ क्रीडा करते! वह सब कहनेसे अब कोई लाभ नहीं! हमने व्रत करके, उपवास करके, देवी-देवताओंकी मानता करके, हृदयसे आत्मासे यही चाह था कि श्रीकृष्ण ही हमारे स्वामी हों, वे हुए भी परन्तु उद्धव! अब वे कहाँ हैं? अब हम उनकी बातें कह रही हैं, उनका सन्देश हम पा रहीं हैं, उनका सुमिरन हम कर रही हैं, परन्तु अब वे कहाँ हैं? हमारे बीचमें वे नहीं है! हमारा जीवन भार हैं, व्यर्थ है!' कहते -कहते गोपियाँ तन्मय हो गयीं! उनका बाह्यज्ञान जाता रहा!
गोपियोंमें जब कुछ-कुछ चेतना आयी, यब वे पागलोंकी भाँती चेष्टा करने लगीं! कोई वृक्षको श्रीकृष्ण समझकर उसे उलाहना देने लगी, कोई लताकुञ्जमें श्रीकृष्णकी उपस्थिति मानकर वहाँसे मुँह फेरकर लौटने लगी, कोई पत्तेकी खडखडाहटसे श्रीकृष्णके आगमनकी अपेक्षा करने लगी और कोई चम्पा, मालती, जूही, गुलाब, कमल आदि फूलोंसे श्रीकृष्णका दूत मानकर उसीको डाँट-फटकार सुनाने लगी! उनकी विचित्र दशा हो गयी! वे संसारको, शरीरको, प्राणकोऔर आत्माको भूलकर श्रीकृष्णमें ही तल्लीन हो गयी! वे श्रीकृष्णकी लीलाओंका गायन करते-करते संकोच छोड़कर रोने लगीं! उद्धवका हृदय द्रवित हो गया, वे गोपियोंके विरहकी ऊँची दशा देखकर मुग्ध हो गये! उन्होंने किसी प्रकार गोपियोंको सांत्वना देकर कहना शुरू किया!
उद्धवने कहा-'गोपियों! तुम्हारा जीवन सफल है सारे लोक और लोकाधिपति तुम्हारी पूजा करते हैं! श्रीकृष्णमें इतना प्रेम, श्रीकृष्णमें इतनी तन्मयता और कहीं देखि नहीं गयी! और कहीं हो नहीं सकती! बड़े-बड़े दान, व्रत, तप, होम, जप, स्वाध्याय, संयम और दुसरे भी कल्याणकारी उपायोंसे भगवान् श्रीकृष्णकी भक्ति प्राप्त की जाती है! बड़े-बड़े मुनियोंको जिस प्रेमकी प्राप्ति दुर्लभ है, सौभाग्यवश वह प्रेम तुम्हें प्राप्त हुआ है! भगवान् के साथ तुम्हारा वह सम्बन्ध हुआ है! यह बड़े ही सौभाग्य और तपस्याका फल है कि तुमलोगोंने अपने पुत्र, पति, स्वजन, देह, गेह और सर्वस्वका त्याग करके पुरषोत्तमभगवान् श्रीकृष्णको पतिरूपमें वरण किया है!
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