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प्रेमी भक्त उद्धव : ..... गत ब्लॉग से आगे... 


तुम्हारी कीर्तिसे ही सारा संसार भरा हुआ है! तुम भगवान् श्रीकृष्णकी नित्य प्रिया आह्लादिनी शक्ति हो! वे जब जहाँ जिस रूपमें रहते हैं तब तहाँ वैसा ही रूप धारण करके तुम भी उनके साथ रहती हो! जब वे महाविष्णु हैं तब तुम महालक्ष्मी हो!जब वे सदाशिव हैं तब तुम आद्याशक्ति हो! जब वे ब्रम्हा हैं तब तुम सरस्वती हों! जब वे राम हैं तब तुम सीता हो और तो क्या कहूँ; माता! तुम उनसे अभिन्न हो! जैसे गन्ध और पृथ्वी, जल और रस, रूप और तेज, स्पर्श और वायु, शब्द और आकाश पृथक-पृथक नहीं हैं, एक ही हैं, वैसे ही श्रीकृष्ण तुमसे पृथक नहीं है! ज्ञान और विद्या, ब्रह्मा और चेतनता, भगवान् और उनकी लीला  जैसे एक हैं वैसे ही तुम भी श्रीकृष्णसे एक हो, वे गोलोकेश्वर हैं तो तुम गोलोकेश्वरी हो! देवी! यह मूर्छा त्यागो, होशमें आओ, मुझे दर्शन देकर मेरा कल्याण करो! 


उद्धवकी प्राथना सुनकर 'श्रीकृष्ण -श्रीकृष्ण' कहती हुई राधा होशमें आयीं! उन्होंने आँखें खोलकर धीरेसे पूछा - 'श्रीकृष्णके समान शरीर और वेशभूषावाले तुम कौन हो? तुम कहाँसे आये हो? क्या श्रीकृष्णने तुम्हें भेजा हैं? अवश्य उन्होंने ही तुम्हें भेजा है! अच्छा बताओ, वे यहाँ कब आवेंगे? मैं उन्हें कब देखूँगी? क्या उनके कमल-से कोमल शरीरमें मैं फिर भी चन्दन लगा सकूँगी? उद्धवने अपना नाम-धाम बताकर आनेका कारण बताया! राधिका कहने लगीं -'उद्धव! वहि यमुना है! वही शीतल मंद सुगन्ध वायु है! वही वृन्दावन है और वही कोयलोंकी कुहक है! वही चन्दनचर्चित शय्या है और वही साज-सामग्री है! परन्तु मेरे प्राणनाथ कहाँ है? इस दासीसे कौनसा अपराध बन गया! अवश्य ही मुझसे अपराध हुआ होगा! हा कृष्ण, हा रमानाथ, प्राणवल्लभ! तुम कहाँ हो?' इतना कहकर राधा फिर मूर्छित हो गयीं! 


उद्धवने उन्हें होशमें लानेकी चेष्टा की! सखियोंने बहुत -से उपचार किये पर राधाको चेतना न हुई! उद्धवने  कहा -'माता! मैं तुम्हें बड़ा ही सुभ सवांद सुना रह हूँ ! अब तुम्हारे विरहका अंत हो गया! श्रीकृष्ण तुम्हारे पास आवेंगे! तुम शीघ्र ही उनके दर्शन पाओगी! वे तुम्हें प्रसन्न करनेके लिये नाना-प्रकारकी क्रीडाएँ करेंगे! 'श्रीकृष्ण आयेंगे' यह सुनकर राधा उठ बैठी! क्या वे सचमुच आयेंगे? हाँ, अवश्य आयेंगे! राधाने उद्धवका बड़ा ही सत्कार किया! 


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