वासुदेवजी की प्रेरणा से एक दिन उनके कुलपुरोहित श्री गर्गाचार्य जी नंदबाबा के गोकुल में आये ! नंदबाबा ने उनके चरणों में प्रणाम किया ! जब गर्गाचार्य जी आराम से बैठ गए तो उनका विधिपूर्वक आतिथ्य-सत्कार किया ! आप ब्रह्मवेताओं में श्रेष्ठ हैं ! इसलिए मेरे इन दोनों बालकों के नामकरण आदि संस्कार आप ही कर दीजिये; क्योंकि ब्राह्मण जन्म से ही मनुष्य का गुरु है ! गर्गाचार्य जी ने कहा यदि मैं तुम्हारे पुत्र का संस्कार कर दूँ और कंस इस बालक को वासुदेव जी लड़का समझ कर मार डाले, तो हमसे बड़ा अन्याय हो जायेगा !
नंदबाबा ने कहा - आचार्यजी ! आप चुपचाप इस एकांत गौशाला में केवल स्वस्तिवाचन करके इस बालक का द्विजातिसमुचित नामकरण-संस्कारमात्र कर दीजिये ! औरों की कौन कहे मेरे सगे-सम्बन्धी भी इस बात को न जानने पावें !
गर्गाचार्य जी ने कहा - यह रोहिणी का पुत्र है ! इसलिए इसका नाम होगा रौहिनेय ! यह अपने सगे-सम्बन्धियों और मित्रों को अपने गुणों से अत्यंत आनंदित करेगा, इसलिए इसका दूसरा नाम होगा 'राम' ! इसके बल की कोई सीमा नहीं है, अत: इसका एक नाम 'बल' भी है ! यह यादवों में और तुमलोगों में कोई भेदभाव नहीं रखेगा और लोगों में फूट पड़ने पर मेल करावेगा, इसलिए इसका एक नाम 'संकर्षण' भी है !
और यह जो सांवला-सांवला है, यह प्रत्येक युग में शारीर ग्रहण करता है ! पिछले युगों में इसने क्रमश: श्वेत, रक्त और पीत - ये तीन विभिन्न रंग स्वीकार किये थे ! अबकी बार यह कृष्णवर्ण हुआ है ! इसलिए इसका नाम 'कृष्ण' होगा ! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वासुदेवजी के घर भी पैदा हुआ था, इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे 'श्रीमान वासुदेव' भी कहते हैं !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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