सर्वशक्तिमान भगवान् कभी-कभी गोपियों के फुसलाने से साधारण बालकों के समान नाचने लगते ! वे उनके हाथ की कठपुतली - उनके सर्वथा अधीन हो गए ! कभी उनकी आज्ञा से पीढ़ा ले आते, तो कभी दुसेरी आदि तौलने के बटखरे उठा लाते ! कभी खड़ाऊं ले आते, तो कभी अपने प्रेमी भक्तों को आनन्दित करने के लिए पहलवानों की भांति ताल ठोकने लगते ! इस प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान् अपनी बाल-लीलाओं से ब्रजवासियों को आनन्दित करते और संसार में जो लोग उनके रहस्य को जानने वाले हैं, उनको यह दिखलाते कि मैं अपने सेवकों के वश में हूँ !
एक दिन कोई फल बेचनेवाली आकर पुकार उठी - 'फल लो फल ! यह सुनते ही समस्त कर्म और उपासना के फल देने वाले भगवान् अच्युत फल खरीदने के लिए अपनी छोटी-सी अंजुली में अनाज लेकर दौड़ पड़े ! उनकी अंजुली में से अनाज तो रास्ते में ही बिखर गया, पर फल बेचनेवाली ने उनके दोनों हाथ फल से भर दिए ! इधर भगवान् ने भी उसकी फल रखने वाली टोकरी रत्नों से भर दी ! एक दिन श्रीकृष्ण और बलराम बालकों के साथ खेलते-खेलते यमुनातट पर चले गए और खेल में ही रम गए, तब रोहिणीजी पुकारने पर भी वे ए नहीं, तब रोहिणीजी ने वात्सल्य स्नेहमयी यशोदाजी को भेजा ! यशोदाजी जाकर उन्हें पुकारने लगीं - 'मेरे प्यारे कन्हैया ! ओ कृष्ण ! कमलनयन ! श्यामसुंदर ! बेटा ! आओ, अपनी माँ का दूध पी लो ! आज तुम्हारा जन्म-नक्षत्र है ! अब तुम भी नहा-धोकर, खा-पीकर, पहन-ओढ़कर तब खेलना' ! माता यशोदा का सम्पूर्ण मन-प्राण-बंधन से बंधा हुआ था ! वे चराचर जगत के शिरोमणि भगवान् को अपना पुत्र समझतीं और इस प्रकार कहकर एक हाथ से बलराम तथा दूसरे हाथ से श्रीकृष्ण को पकड़कर अपने घर ले आयीं ! इसके बाद उन्होंने पुत्र के मंगल के लिए जो कुछ करना था, वह बड़े प्रेम से किया !
जब नंदबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपों ने देखा कि महावन में तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, तब वे लोग इकट्ठे होकर 'अब ब्रजवासियों को क्या करना चाहिए' - इस विषय पर विचार करने लगे ! एक गोप थे उपनंद वे अवस्था में तो बड़े थे ही, ज्ञान में भी बड़े थे ! उन्हें इस बात का पता था कि किस समय किस स्थान पर किस वस्तु से कैसा व्यवहार करना चाहिए !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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