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राम और श्याम दोनों ही अपनी तोतली बोली और अत्यंत मधुर बालोचित लीलाओं से गोकुल की ही तरह वृन्दावन में भी ब्रजवासियों को आनंद देते रहे ! श्याम और राम कहीं बांसुरी बजा रहे हैं, तो कहीं गुलेल या ढेलवांस से ढेले या गोलियां फेंक रहे हैं, तो कहीं बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे हैं ! तो कहीं मोर, कोयल,बन्दर आदि पशु-पक्षियों की बोलियाँ निकाल रहे हैं ! इस प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान् साधारण बालकों के समान खेलते रहते !
एक दिन की बात है, श्याम और बलराम अपने प्रेमी सखा ग्वालबालों के साथ यमुनातट पर बछड़े चरा रहे थे ! उसी समय उन्हें मारने की नीयत से एक दैत्य आया ! भगवान् ने देखा कि वह बनावटी बछड़े का रूप धारणकर बछड़ों के झुण्ड में मिल गया है ! वे आँखों के इशारे से बलराम जी को दिखाते हुए धीरे-धीरे उसके पास पंहुच गए हैं ! भगवान् श्रीकृष्ण ने पूंछ के साथ उसके दोनों पिछले पैर पकड़कर आकाश में घुमाया और मर जानेपर कैथ के वृक्ष पर पटक दिया ! यह देखकर ग्वालबालों के आश्चर्य कि सीमा न रही ! वे प्यारे कन्हैया कि प्रशंसा करने लगे ! देवता भी बड़े आनंद से फूलों की वर्षा करने लगे !
एक दिन की बात है, सब ग्वालबाल अपने झुण्ड-के-झुण्ड बछड़ों को पानी पिलाने के लिए जलाशय के तट पर ले गए ! ग्वालबालों ने देखा कि वहां एक बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ है ! ग्वालबाल उसे देखकर डर गए ! वह 'बक' नाम का एक बड़ा भारी असुर था, जो बगुले का रूप धरके वहां आया था ! उसकी चोंच बड़ी तीखी थी और वह स्वयं बड़ा बलवान था ! जब बलराम आदि बालकों ने देखा कि वह बड़ा भारी बगुला श्रीकृष्ण को निगल गया, तब उनकी वही गति हुई जो प्राण निकल जानेपर इन्द्रियों की होती है ! वे अचेत हो गए ! जब श्रीकृष्ण बगुले के तालू के नीचे पंहुचे , तब वे आग के समान उसका तालू जलाने लगे ! अत: उस दैत्य ने श्रीकृष्ण के शरीर पर बिना किसी प्रकार का घाव किये ही झटपट उन्हें उगल दिया और फिर बड़े क्रोध से अपनी कठोर चोंच से उन पर चोट करने के लिए टूट पड़ा ! भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों ठौर पकड़ लिए और ग्वालबालों के देखते-देखते खेल-ही-खेल में उसे वैसे ही चीर डाला, जैसे कोई वीरण (गाँडर, जिसकी जड़ का खस होता है) को चीर डाले ! इस से देवताओं को बड़ा आनंद हुआ !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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