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भगवान् श्रीकृष्ण बछड़े न मिलने पर यमुना जी के पुलिन पर लौट आये, परन्तु यहाँ क्या देखते हैं कि ग्वालबाल भी नहीं हैं ! तब उन्होंने वनमें घूम-घूमकर चारों ओर उन्हें ढूँढा ! तब वे जान गए कि यह सब ब्रह्मा कि करतूत है ! वे तो सारे विश्व के एकमात्र ज्ञाता हैं ! अब भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने-आप को ही बछड़ों और ग्वालबालों - दोनों के रूप में बना लिया ! क्योंकि वे ही तो सम्पूर्ण विश्व के करता सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं ! वे बालक और बछड़े संख्या में जितने थे, ठीक वैसे ही और उतने ही रूपों में सर्वस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हो गए ! सर्वात्मा भगवान् स्वयं ही बछड़े बन गए और स्वयं ही ग्वालबाल ! अपने आत्मस्वरूप बछड़ों और ग्वालबालों के द्वारा घेरकर अपने ही साथ अनेकों प्रकार के खेल खेलते हुए उन्होंने ब्रज में प्रवेश किया ! इसी प्रकार प्रतिदिन संध्यासमय भगवान् श्रीकृष्ण उन ग्वालबालों के रूप में वन से लौट आते और अपनी बालसुलभ लीलाओं से माताओं को आनंदित करते ! इस प्रकार सर्वात्मा श्रीकृष्ण बछड़े और ग्वालबालों के बहाने गोपाल बनकर अपने बालक रूप से वत्सरुप का पालन करते हुए इस वर्ष तक वन और गोष्ट में क्रीडा करते रहे !
बलराम जी ने देखा कि सर्वात्मा श्रीकृष्ण में ब्रजवासियों का और मेरा जैसा अपूर्व स्नेह हैं, वैसा ही इन बालकों और बछड़ों पर भी बढता जा रहा है ! बलराम जी ने ऐसा विचार करके ज्ञानदृष्टि से देखा, तो उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि इन सब बछड़ों और ग्वालबालों के रूप में केवल श्रीकृष्ण-ही-श्रीकृष्ण हैं ! तब उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा - 'भगवन ! कृपया स्पष्ट करके थोड़े में ही यह बतला दीजिये कि आप इस प्रकार बछड़े,बालक,सिंगी,रस्सी आदि के रूप में अलग-अलग क्यों प्रकाशित हो रहे हैं ? तब भगवान् ने ब्रह्मा कि सारी करतूत सुनाई और बलराम जी ने सब बातें जान लीं !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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