यमुना जी में कालिया नाग का एक कुण्ड था l उसका जल विष की गर्मी से खौलता रहता था l यहाँ तक कि उसके ऊपर उड़ने वाले पक्षी भी झुलस कर उसमें गिर जाया करते थे l भगवान् का अवतार तो दुष्टों का दमन करने के लिए होता ही है l जब उन्होंने देखा कि उस सांप के विष का वेग बड़ा प्रचंड (भयंकर) है और वह भयानक विष ही उसका महान बल है तथा उसके कारण मेरे विहार का स्थान यमुनाजी दूषित हो गयी हैं, तब भगवान् श्रीकृष्ण अपनी कमर का फेंटा कसकर एक बहुत ऊँचे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गए और वहां से ताल ठोंककर उस विषेले जल में कूद पड़े l भगवान् श्रीकृष्ण कालियादह में कूदकर अतुल बलशाली मतवाले गजराज के समान जल उछालने लगे l इस प्रकार जल-क्रीडा करने पर उनकी भुजाओं कि टक्कर से जल में बड़े जोर का शब्द होने लगा l आंख से ही सुनने वाले कालिया नाग ने वह आवाज सुनी और देखा कि कोई मेरे निवास-स्थान का तिरस्कार कर रहा है l उसे यह सहन न हुआ l उसने देखा कि सामने एक सांवला-सलोना बालक है l उसमें लगकर ऑंखें हटने का नाम ही नहीं लेतीं l उसके वक्षस्थल पर एक सुनहली रेखा - श्रीवत्स का चिन्ह है और चरण इतने सुकुमार और सुन्दर हैं. मानो कमल कि गद्दी हो l बालक तनिक भी न डरकर इस विषेले जल में मौज से खेल रहा है, तब उसका क्रोध और भी बढ़ गया l उसने श्रीकृष्ण को मर्मस्थानों में डंसकर अपने शरीर के बंधन से उन्हें जकड लिया l यह देखकर उनके प्यारे सखा ग्वालबाल, गाय,बैल,बछिया और बछड़े बड़े दुःख से डकराने लगे l वे डरकर इस प्रकार खड़े हो गए., मानो रो रहे हो l उस समय उनका शरीर हिलता-डोलता न था l
इधर ब्रज में पृथ्वी, आकाश और शरीरों में बड़े भयंकर-भयंकर तीनों प्रकार के उत्पात उठ खड़े हुए l नंदबाबा आदि गोपों ने पहले तो उन अपशकुनों को देखा और पीछे से यह जाना कि आज श्रीकृष्ण बिना बलराम के ही गाय चराने चले गए l वे भय से व्याकुल हो गए कि आज तो श्रीकृष्ण की मृत्यु ही हो गयी होगी l वे उसी क्षण दुःख,शोक और भय से आतुर हो गए l क्यों न हों, श्रीकृष्ण ही उनके प्राण,मन और सर्वस्व जो थे l ब्रजवासी अपने प्यारे श्रीकृष्ण को ढूँढने लगे l कोई अधिक कठिनाई न हुई; क्योंकि मार्ग में उन्हें भगवान् के चरणचिन्ह मिलते जाते थे l इस प्रकार वे यमुना- तट की ओर जाने लगे l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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