अब आगे.......
उन्होंने दूर से ही देखा कि कालियादह में कालिया नाग के शरीर से बंधे हुए श्रीकृष्ण चेष्टाहीन हो रहे हैं l यह सब देखकर वे सब गोप अत्यंत व्याकुल और अंत में मूर्छित हो गए l गोपियों का मन अनंत गुणगणनिलय भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम के रंग में रंगा हुआ था l जब उन्होंने देखा कि हमारे प्रियतम श्यामसुंदर को काले साँप ने जकड रखा है, तब तो उनके ह्रदय में बड़ा ही दुःख और बड़ी ही जलन हुई l सबकी ऑंखें श्रीकृष्ण के मुखकमल पर लगी थीं l नंदबाबा आदि के जीवन-प्राण तो श्रीकृष्ण ही थे l वे श्रीकृष्ण के लिए कालियादह में घुसने लगे l जब श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रज के सभी लोग स्त्री और बच्चों के साथ मेरे लिए इस प्रकार अत्यंत दुखी हो रहे हैं l तब वे एक मुहूर्त तक सर्प के बंधन में रहकर बाहर निकल आये l भगवान् श्रीकृष्ण ने उस समय अपना शरीर फुलाकर खूब मोटा कर लिया, इस से साँप का शरीर टूटने लगा l वह अपना नागपाश छोड़कर अलग खड़ा हो गया और क्रोध से आगबबूला हो अपने फन ऊँचा करके फुफकारें मारने लगा l उसके मुंह से आग की लपटें निकल रहीं थीं l अपने वाहन गरुड़ के समान भगवान् श्रीकृष्ण उसके साथ खेलते हुए पैंतरा बदलने लगे और वह साँप भी पैंतरा बदलने लगा l इस प्रकार पैंतरा बदलते-बदलते उसका बल क्षीण हो गया l तब भगवान् श्रीकृष्ण ने उसके बड़े-बड़े सिरों को तनिक दबा दिया और उछलकर उन पर सवार हो गए l
उनके स्पर्श से भगवान् के सुकुमार तलुओं की लालिमा और भी बढ गयी l भगवान् श्रीकृष्ण उसके सिरों पर कलापूर्ण नृत्य करने लगे l भगवान् के प्यारे भक्त, गन्धर्व, सिद्ध, देवता, चारण और देवांगनाओं ने जब देखा कि भगवान् नृत्य करना चाहते हैं, तब वे बड़े प्रेम से मृदंग, ढोल, नगारे आदि बाजे बजाते हुए, सुन्दर-सुन्दर गीत गाते हुए, भगवान् के पास आ पहुंचे l कालिया नाग के एक सौ एक सिर थे l वह जिस सिर को नहीं झुकाता था, उसीको प्रचण्ड दंडधारी भगवान् अपने पैरों कि चोट से कुचल डालते l इस से कालियानाग कि जीवनशक्ति क्षीण हो चली, वह मुंह और नथुनों से खून उगलने लगा l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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