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भगवान् के इस अद्भुत ताण्डव-नृत्य से कालिया के फनरूप छत्ते छिन्न-भिन्न हो गए l उसका एक-एक अंग चूर-चूर हो गया और मुंह से खून की उल्टी होने लगी l वह मन-ही-मन भगवान् की शरण में गया l भगवान् श्रीकृष्ण के उदर में सम्पूर्ण विश्व है l इसलिए उनके भरी बोझ से कालिया नाग के शरीर की एक-एक गाँठ ढीली पड़ गयी l अपने पति की यह दशा देखकर उसकी पत्नियाँ भगवान् की शरण में आयीं l भगवान् श्रीकृष्ण को शरणागत-वत्सल जानकार अपने अपराधी पति को छुड़ाने की इच्छा से उन्होंने उनकी शरण ग्रहण की l
नागपत्नियों ने कहा - आपका यह अवतार ही दुष्टों को दंड देने के लिए हुआ है l इसलिए इस अपराधी को दंड देना सर्वथा उचित है l आपने हमलोगों पर यह बड़ा ही अनुग्रह किया l यह तो आपका कृपा-प्रसाद ही है l क्योंकि आप जो दंड देते हैं, उस से उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं l अवश्य ही पूर्वजन्म में इसने स्वयं मानरहित होकर और दूसरों का सम्मान करते हुए कोई बहुत बड़ी तपस्या की है l तभी तो आप इस के ऊपर संतुष्ट हुए हैं l प्रभो !जो आपके चरणों की धूल की शरण ले लेते हैं, वे भक्तजन स्वर्ग का राज्य या पृथ्वी की बादशाही नहीं चाहते l उन्हें अणिमादि योग-सिद्धियों की भी चाह नहीं होती l यहाँ तक कि वे जन्म-मृत्यु से छुड़ानेवाले कैवल्य-मोक्ष की भी इच्छा नहीं करते l प्रभो ! हम आपको प्रणाम करती हैं l आप सबके अंत:करणों में विराजमान होने पर भी अनंत हैं l आप प्रकृति से परे स्वयं परमात्मा हैं l आप विश्वरूप होते हुए भी उस से अलग रहकर उसके दृष्टा हैं l तीनों गुण और उनके कार्यों में होने वाले अभिमान के द्वारा आपने अपने साक्षात्कार को छिपा रखा है l समस्त शास्त्र आपसे ही निकले हैं, और आपका ज्ञान स्वत:सिद्ध है l श्रीकृष्ण हम आपको बार-बार नमस्कार करती हैं l ऋषिकेश ! आप मननशील आत्माराम हैं l मौन ही आपका स्वभाव है l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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