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भगवान् के इस प्रकार कहने पर अक्रूरजी कुछ अनमने से हो गए l उन्होंने पुरी में प्रवेश करके कंस से श्रीकृष्ण और बलराम के ले आने का समाचार निवेदन किया और अपने घर गए l भगवान् ने देखा कि नगर के परकोटे में स्फटिक मणि के बहुत ऊँचे-ऊँचे दरवाजे तथा घरों में भी बड़े-बड़े फाटक बने हुए हैं l स्थान-स्थान पर सुन्दर-सुन्दर उद्यान और रमणीय उपवन (केवल स्त्रियों के उपयोग में आने वाले बगीचे) शोभायमान हैं l सड़क, बाज़ार, गली एवं चौराहों पर खूब छिडकाव किया गया है l स्थान-स्थान पर फूलों के गज़रे, जवारे (जौ के अंकुर), खील और चावल बिखरे हुए हैं l वे फूल, दीपक, नयी-नयी कोंपले फलसहित केले और सुपारी के वृक्ष, छोटी-छोटी झंडियों और रेशमी वस्त्रों से भली-भांति सजाये हुए हैं l उस समय नगर कि नारियां बड़ी उत्सुकता से उन्हें देखने के लिए झटपट अटारियों पर चढ़ गयीं l कई रमणियाँ तो भोजन कर रही थीं, वे हाथ का कौर फेंक कर चल पड़ीं l सब का मन उत्साह और आनन्द से भर रहा था l कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण मतवाले गजराज के समान बड़ी मस्ती से चल रहे थे l उन्होंने अपनी विलासपूर्ण प्रगल्भ हंसी तथा प्रेमभरी चितवन से उनके मन चुरा लिए l मथुरा के स्त्रियाँ चिरकाल से श्रीकृष्ण के लिए चंचल, व्याकुल हो रही थीं l आज उन्होंने उन्हें देखा l उन स्त्रियों ने नेत्रों के द्वारा भगवान् को अपने ह्रदय ले जाकर उनके आनंदमय स्वरुप का आलिंगन किया l उस समय उन स्त्रियों के मुखकमल प्रेम के आवेग से खिल रहे थे l भगवान् को देखकर सभी पुरवासी आपस में कहने लगे - 'धन्य है ! धन्य है !' गोपियों ने ऐसी कौन सी महान तपस्या कि है, जिसके कारण वे मनुष्मत्र को परमानन्द देनेवाले इन दोनों मनोहर किशोरों को देखती रहती हैं l
इसी समय भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि एक धोबी उनकी ओर आ रहा है l भगवान् श्रीकृष्ण ने उससे धुले हुए उत्तम-उत्तम कपडे माँगे l भगवान् ने कहा - 'भाई ! तुम हमें ऐसे वस्त्र दो, जो हमारे शरीर में पुरे-पुरे आ जाएँ l इसमें सन्देह नहीं कि यदि तुम हम लोगों को वस्त्र दोगे, तो तुम्हारा परम कल्याण होगा l भगवान् सर्वत्र परिपूर्ण हैं l फिर भी उन्होंने इस प्रकार मांगने कि लीला की l परन्तु वह मूर्ख भगवान् की वस्तु भगवान् को देना तो दूर रह, वह क्रोध करने लगा l तब भगवान् श्रीकृष्ण ने तनिक कुपित होकर उसे एक तमाचा जमाया और उसका सिर धडाम से धड से नीचे जा गिरा l यह देखकर उस धोबी के साथी सब-के-सब कपड़ों के गट्ठर वहीँ छोड़कर इधर-उधर भाग गए l भगवान् ने उन वस्त्रों को ले लिया और चल दिए l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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