बहुत अवश्यक ध्यान रखने की बात
- सबसे विनयपूर्वक मीठी वाणी से बोलना |
- किसी की चुगली या निंदा नहीं करना |
- किसी के सामने किसी भी दुसरे के कही हुई बात को न कहना , जिससे सुनने वाले के मन में उसके प्रति द्वेष या दुर्भाव पैदा हो या बढे |
- जिससे किसी के प्रति सद्भाव तथा प्रेम बढे , द्वेष हो तोह मिट जाये या घट जाये , ऎसी ही उसकी बात किसी के सामने कहना |
- किसी को ऐसे बात कभी न कहना जिससे उसका जी दुखे |
- बिना कार्य जायदा न बोलना , किसी के बिच में न बोलना , बिना पूछे अभिमानपूर्वक सलाह न देना, ताना न मारना, साप न देना |
- अपने को भी बुरा भला न कहना , गुस्से में आकर अपने को भी साप न देना, न सर पीटना |
- जहा तक हो परचर्चा न करना, जगचर्चा न करना |
- आये हुए का आदर सत्कार करना, विनय सम्मान के साथ हस्ते हुए बोलना |
- किसी के दुःख के समय सहानुभूतिपूर्ण वाणी से बोलना, हसना नहीं,किसी को कभी चिढाना नहीं |
- अभिमान वश घरवालो को कभी किसी को मुर्ख, मन्द्भुधि, नीच,वृतिवाला तथा अपने से नीचा न मानना , सच्चे ह्रदय से सबका सम्मान-हित करना |
- मन में अभिमान तथा दुर्भाव न रखना, वाणी से कभी कठोर तथा निंदनीय सब्दो का उच्चारण न करना |
- सदा मधुर विनम्रता युक्त वचन बोलना | मुर्ख को मुर्ख कहकर उसी दुःख न देना |
- किसी का अहित हो ऐसे बात न सोचना, न कहना और न कभी करना |
- ऐसे ही बात सोचना, कहना और करना जिससे किसी का हित हो |
- धन, जन,विद्या,जाती,उम्र,रूप,स्वस्थ्य.बुधि आदि का कभी अभिमान न करना |
- भाव से, वाणी से , इशारे से भी कभी किसी का अपमान न करना, किसी की दिल्लगी न उडाना |
दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४, पेज न ११८-११९
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