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बहुत अवश्यक ध्यान रखने की बात

बहुत अवश्यक ध्यान रखने की बात
  1. सबसे विनयपूर्वक मीठी वाणी से बोलना |
  2. किसी की चुगली या निंदा नहीं करना |
  3. किसी के सामने किसी भी दुसरे के कही हुई बात को न कहना , जिससे सुनने वाले के मन में उसके प्रति द्वेष या दुर्भाव पैदा हो या बढे |
  4. जिससे किसी के प्रति सद्भाव तथा प्रेम बढे , द्वेष हो तोह मिट जाये या घट जाये , ऎसी ही उसकी बात किसी के सामने कहना |
  5. किसी को ऐसे बात कभी न कहना जिससे उसका जी दुखे |
  6. बिना कार्य जायदा न बोलना , किसी के बिच में न बोलना , बिना पूछे अभिमानपूर्वक सलाह न देना, ताना न मारना, साप न देना |
  7. अपने को भी बुरा भला न कहना , गुस्से में आकर अपने को भी साप न देना, न सर पीटना |
  8. जहा तक हो परचर्चा न करना, जगचर्चा न करना |
  9. आये हुए का आदर सत्कार करना, विनय सम्मान के साथ हस्ते हुए बोलना |
  10. किसी के दुःख के समय सहानुभूतिपूर्ण वाणी से बोलना, हसना नहीं,किसी को कभी चिढाना नहीं |
  11. अभिमान वश घरवालो को कभी किसी को मुर्ख, मन्द्भुधि, नीच,वृतिवाला तथा अपने से नीचा न मानना , सच्चे ह्रदय से सबका सम्मान-हित करना |
  12. मन में अभिमान तथा दुर्भाव न रखना, वाणी से कभी कठोर तथा निंदनीय सब्दो का उच्चारण न करना |
  13. सदा मधुर विनम्रता युक्त वचन बोलना | मुर्ख को मुर्ख कहकर उसी दुःख न देना |
  14. किसी का अहित हो ऐसे बात न सोचना, न कहना और न कभी करना |
  15. ऐसे ही बात सोचना, कहना और करना जिससे किसी का हित हो |
  16. धन, जन,विद्या,जाती,उम्र,रूप,स्वस्थ्य.बुधि आदि का कभी अभिमान न करना |
  17. भाव से, वाणी से , इशारे से भी कभी किसी का अपमान न करना, किसी की दिल्लगी न उडाना |

दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४, पेज ११८-११९

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