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भक्त की भावना

भक्त की भावना
भगवान् नित्य मेरे साथ है, मुझे अकेले किसी परिस्थीथी का सामना करने की आवस्यकता नहीं | चाहने पर भगवान् का प्रेमभरा एवं विवेकपूर्ण परामर्श मेरे लिए प्रस्तुत है | उनका सहाय्य्य आबाध तथा सदा विजयी है | भगवान् अंतर्यामी रूप से नित्य मुझमे अवस्थित है | मैं अपनी किसी भी आवस्यकता के लिए भगवान् के सहाय्य पर निर्भर कर सकता हु - इश ज्ञान से में सदा अविचलित हु | में प्रतिदिन की छोटी छोटी समस्याओ को सुल्ज़ाने में भी भगवान् की सहायता चाहता हु | जब कभी मेरी आवस्यकता तीव्र होती है , अथवा जीवन में कोई विकट स्थिती उपस्थित होती है, तब में भगवान् से सहायता चाहता हु |मेरी आवस्यकता छोटी है या बड़ी, मैं इश बात का विचार किये बिना ही अंतर्मुख हो भगवान् की सहायता चाहता हु | भगवान् मुझे शक्ति देते है और विचलित होते हुए साहस के समय मुझे बल देते है | उनका ज्ञान मुझे अपने सामने आई प्रत्येक समस्या को सुल्ज्हने में मार्गदर्शन करता है | भगवान् का प्रकाश मेरे ग्रहण करने योग्य मार्ग को मेरे सामने अनाव्रत करके रख देता है, अत एव मेरे निश्चय करने में संदेह अथवा हिचक का कोई कारन नहीं है | मुझे भगवान् से केवल इस निश्चय के प्राप्ति के लिए के भगवान् अंतर्यामी रूप से नित्य मुझमे अवस्थित है और प्रत्येक आवस्यकता में वे ,मेरी सहायता करते है, प्राथन करने के आवस्यकता है |भगवान् मेरी शरण एवं शक्ति है , आवस्यकता के समय तत्काल अचूक रूप से प्राप्त होने वाली सहायता है | दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४

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