जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

शुक्रवार, जुलाई 20, 2012

करने योग्य

करने योग्य
  1. 'भगवान् स्वभाव से ही दयालु और सुहृद है | भगवान् के मुज़्ह पर अहेतु कृपा बरसती रहती है | वे मेरे लिए जो कुछ भी फल विधान करते है , उसमे निश्चय ही मेरी आत्मा का परम कल्याण है | जो कुछ भी दुःख के रूप में आता है ,वह भगवान् का आशीर्वाद है और जैसे सोने को आग में तपा कर सुध किया जाता है, वैसे ही भगवान् दुखो में तपा कर मुझको सुध कर रहे है तथा अपने पास सदा के लिए बुला लेने की व्यवस्था कर रहे है | भगवान् मेरे है, भगवान् ही मेरे है और कुछ भी मेरा नहीं है | मुझे भगवान् कभी छोड़ते नहीं , छोड़ सकते नहीं | उन्होंने मुझको अपना बना लिया है | इश प्रकार दिन में कई बार निश्चय करना है' |
  2. 'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |
  3. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||'
  4. इस नाम मन्त्र के १४ माला का जप रोज करना है | माला पर जप होने में सुभीता न हो तोह दिन भर में ढाई घंटा ( एकबार , या दो बार , या तीन बार ) में जप पूरा कर लेना चाहिए
  5. भगवान् के स्वरुप की पहले भलीभाती धारणा करके फिर धयान करना चाहिए |
  6. अपने पर भगवान् के महान कृपा समजह कर हर हालत में प्रसन्न रहना चाहिए | कभी न उदास होना चाहिए, न रोना |
  7. सबके साथ नम्रता का व्यवहार करना चाहिए तथा सहनशील बनना चाहिए |
  8. संसार के सम्बन्ध को नाटक के सम्बन्ध के तरह केवल खेल्मात्र मन्ना चाहिए , कभी राग, द्वेष, मोह नहीं करना चाहिए |
  9. जब जप-ध्यान में मन न लगे, तब अच्छी पुस्तके पढनी चाहिए तथा प्रत्येक काम को भगवान् के पूजा समजह कर करना चाहिए
***************************************************************** दुःख में भगवत कृपा , हनुमान प्रसाद पोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४ ****************************************************************

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