अब आगे.........
आपको यही मानना चाहिए कि आपने उसका हक़ ही उसको दिया है l वह उपकार मानकर कृतज्ञ हो तो यह उसका कर्त्तव्य है, परन्तु आपको तो यही मानना चाहिए कि मैंने उसका कोई उपकार नहीं किया है l वस्तुत: किसी को आप कुछ देते हैं तो आपका ही उपकार होता है l
१- भगवान् की चीज़ भगवान् की सेवा में लगी, आप बेईमानी से बचे और भगवान् के दरबार में ईमानदारी का इनाम पाने के अधिकारी हो गए l
२-धन का सदुपयोग हुआ तो आपकी सदगति में कारण है - धन की तीन गति होती हैं - दान, भोग और नाश l आपका कमाया हुआ धन आपके या दूसरे किसी के द्वारा बुरे काम में लगता तो आपको दुर्गति भोगनी पड़ती l
३- दान से आपकी कीर्ति हुई, उसका और उसके परिवार का आशीर्वाद मिला l किसी को उचित वेतन या हिस्सा देकर रखा तो आपके व्यापार क काम ठीक चला, जिससे आपको लाभ पहुँचा l अच्छे आदमियों से आपकी प्रीति और मैत्री हुई तो समय पर विपत्ति में आपकी सहायता देनेवाली होगी l
४- आपको तृप्ति हुई, जिससे आनन्द प्राप्त हुआ l इस प्रकार वस्तुत: आपको ही उपकार हुआ l
'देकर भूल जाएँ और लेकर याद रखें l ' किसी का भला कर के भूल जाएँ और बुरा करके याद रखें l किसी के द्वारा अपना बुरा होने पर भूल जाएँ और भला होने पर याद रखें l '
लोक-परलोक-सुधार-१(३५३)
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