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धन का सदुपयोग






अब आगे.........
           
              सन्तों  की इस उक्ति को याद रखना चाहिए l नीचे लिखी सात बातें सदा याद रखने की हैं  -
              १- नौकर और मजदूरों को अपने से नीचा समझकर उनका अपमान न करें l उनको अपने धन का हिस्सेदार समझें और जहांतक हो उन्हें इतनी मजदूरी  दें जिससे उनके बाल-बच्चों को अन्न-वस्त्र का कभी अभाव न हो l  विपत्ति, रोग और अभाव के समय सहानुभूतिपूर्ण ह्रदय से उनकी विशेष सेवा करें l
               २- हो सके तो सब में भगवद बुद्धि  करके भगवत्सेवा के भाव से सबके साथ यथायोग्य बर्ताव करते हुए उनकी सेवा करें  l
               ३- दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करें, जैसा दूसरों से हम अपने प्रति चाहते हैं l
               ४- सब में आत्मभाव रखकर यथासाध्य दूसरों के दुखों को अपना दुःख समझकर उनका दुःख दूर करने के चेष्टा करें l
               ५- सन्तों  का तो यह स्वभाव होता है कि वे अपने दुःख की तो परवा नहीं करते, परन्तु दूसरों के दुःख और अध्:पतन से असह्य पीड़ा का अनुभव करते हैं l सन्तों के इस आदर्श पर बराबर विचार करें l
                ६- मरने के बाद धन यहीं रह जायेगा l अपने हाथ से भगवान् की सेवा में लगा दिए जाने से धन की सार्थकता है l इस सिद्धान्त को सत्य मानकर  अपने ही हाथों दान, भेंट आदि के रूप में सत्कारपूर्वक व्यय कर देना चाहिए l
                ७- अभावग्रस्त लोग सहायता माँगें तो तंग आकर उनका कभी जरा भी अपमान नहीं करें l बल्कि यथाशक्ति उनकी सेवा करें l इसीमें धन का सदुपयोग है l

             
लोक-परलोक-सुधार-१(३५३)    

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