जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

गुरुवार, अक्तूबर 25, 2012

रास-रहस्य[त्याग की पराकाष्ठा]



अब आगे.....

          श्री गोपांगनाएं भगवत स्वरूपा हैं, चिन्मयी हैं, सच्चिदानंद मयी  हैं l  साधना की दृष्टि से भी, इन्होने जड़ शरीर का मानो इस तरह से त्याग कर दिया l सूक्ष्म शरीर से प्राप्त होने वाले स्वर्ग, कैवल्य से अनुभव होनेवाले आनन्दस्वरूप का भी त्याग कर दिया l  इनकी दृष्टि में क्या है ? गोपियों की दृष्टि में क्या है - यह बहुत गम्भीर समझने की वस्तु है, साधना की ऊँची-से-ऊँची साध्य वस्तु l गोपियों की दृष्टि में है  - केवल और केवल चिदानन्द स्वरूप प्रेमास्पद श्रीकृष्ण प्रियतम और इनके ह्रदय में श्रीकृष्ण को तृप्त करने वाला निर्मल प्रेमामृत छलकता रहता है नित्य l  इसीलिए श्रीकृष्ण उनके ह्रदय के प्रेमामृत का रसास्वादन करने के लिए लालायित रहते हैं, इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्दीपन-मंच की रचना की, गोपांगनाओं का आह्वान किया और इसीलिए शरद की रात्रियों को उन्होंने चुना और आमन्त्रित किये l यहाँ  पर यह कल्पना भी नहीं करनी चाहिए कि यहाँ कोई जड़-राज्य है l  गोपियों के वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए l  शास्त्रों में आता है - ब्रह्मा, शंकर, नारद, उद्धव और अर्जुन- जैसे महान लोगों ने बड़े-बड़े त्यागी ऋषि-मुनियों ने यहाँ तक कि स्वयं 'ब्रह्मविद्या' ने दीर्घकाल तक तप-उपासना करके गोपिभाव की थोड़ी-सी लीला देखने के लिए वरदान प्राप्त किया l अनुसूया, सावित्री इत्यादि महान पतिव्रता देवियाँ भी गोपियों की चरण-धूलि की उपासिका थीं l एकमात्र श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कोई पति है ही नहीं - इस बात को देखने वाली परम पतिव्रता तो एकमात्र श्रीगोपियाँ ही हैं l दूसरी कोई थी ही नहीं और कभी ऐसा कोई हुआ ही नहीं l
           इस स्थिति का भाव  जब देख सकें, तभी हम गोपियों की दिव्य लीला पर विचार कर सकते हैं, अन्यथा कदापि नहीं l सबसे पहले यह बात ध्यान में रखने की है कि यह 'भगवान्' कि लीला है l भगवान् सचिदानन्दघन दिव्य हैं, अजन्मा हैं, अविनाशी हैं , हानोपादान रहित  हैं, सनातन हैं, सुन्दर हैं l  इसीप्रकार श्री गोपांगनाएं भी भगवान् की स्वरूप भूता, श्रीराधा-रानी की कायव्यूहरूपा हैं l ये सब इनकी अन्तरंग शक्तियां हैं l इन दोनों का सम्बन्ध भी नित्य और दिव्य है l भाव-राज्य की यह लीला स्थूल शरीर, स्थूल मन के परे की वस्तु है l

                               
मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]