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रास-रहस्य[त्याग की पराकाष्ठा]



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          श्री गोपांगनाएं भगवत स्वरूपा हैं, चिन्मयी हैं, सच्चिदानंद मयी  हैं l  साधना की दृष्टि से भी, इन्होने जड़ शरीर का मानो इस तरह से त्याग कर दिया l सूक्ष्म शरीर से प्राप्त होने वाले स्वर्ग, कैवल्य से अनुभव होनेवाले आनन्दस्वरूप का भी त्याग कर दिया l  इनकी दृष्टि में क्या है ? गोपियों की दृष्टि में क्या है - यह बहुत गम्भीर समझने की वस्तु है, साधना की ऊँची-से-ऊँची साध्य वस्तु l गोपियों की दृष्टि में है  - केवल और केवल चिदानन्द स्वरूप प्रेमास्पद श्रीकृष्ण प्रियतम और इनके ह्रदय में श्रीकृष्ण को तृप्त करने वाला निर्मल प्रेमामृत छलकता रहता है नित्य l  इसीलिए श्रीकृष्ण उनके ह्रदय के प्रेमामृत का रसास्वादन करने के लिए लालायित रहते हैं, इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्दीपन-मंच की रचना की, गोपांगनाओं का आह्वान किया और इसीलिए शरद की रात्रियों को उन्होंने चुना और आमन्त्रित किये l यहाँ  पर यह कल्पना भी नहीं करनी चाहिए कि यहाँ कोई जड़-राज्य है l  गोपियों के वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए l  शास्त्रों में आता है - ब्रह्मा, शंकर, नारद, उद्धव और अर्जुन- जैसे महान लोगों ने बड़े-बड़े त्यागी ऋषि-मुनियों ने यहाँ तक कि स्वयं 'ब्रह्मविद्या' ने दीर्घकाल तक तप-उपासना करके गोपिभाव की थोड़ी-सी लीला देखने के लिए वरदान प्राप्त किया l अनुसूया, सावित्री इत्यादि महान पतिव्रता देवियाँ भी गोपियों की चरण-धूलि की उपासिका थीं l एकमात्र श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कोई पति है ही नहीं - इस बात को देखने वाली परम पतिव्रता तो एकमात्र श्रीगोपियाँ ही हैं l दूसरी कोई थी ही नहीं और कभी ऐसा कोई हुआ ही नहीं l
           इस स्थिति का भाव  जब देख सकें, तभी हम गोपियों की दिव्य लीला पर विचार कर सकते हैं, अन्यथा कदापि नहीं l सबसे पहले यह बात ध्यान में रखने की है कि यह 'भगवान्' कि लीला है l भगवान् सचिदानन्दघन दिव्य हैं, अजन्मा हैं, अविनाशी हैं , हानोपादान रहित  हैं, सनातन हैं, सुन्दर हैं l  इसीप्रकार श्री गोपांगनाएं भी भगवान् की स्वरूप भूता, श्रीराधा-रानी की कायव्यूहरूपा हैं l ये सब इनकी अन्तरंग शक्तियां हैं l इन दोनों का सम्बन्ध भी नित्य और दिव्य है l भाव-राज्य की यह लीला स्थूल शरीर, स्थूल मन के परे की वस्तु है l

                               
मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]                            

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