जो पुरुष काम,क्रोध और लोभ को पापो की खान समझकर उनका त्याग
करके अहिंसा-धर्म का पालन करता है, वह मोक्ष रूप सिद्धि को प्राप्त होता है, इसमें
कोई संदेह नहीं है | जो मनुष्य अपने आराम के लिए दीन-प्राणियो का वध करता है, वह
मृत्यु के बाद कभी सुखी नहीं हो सकता | मरने के बाद परमसुख उसी को मिलता है, जो
सभी प्राणियो को अपने ही समान समझकर किसी पर भी क्रोध नहीं करता और किसी को भी चोट
नहीं पहुँचाता | जो मनुष्य प्राणिमात्र को अपने ही समान सुख की कामना और दुःख की
अनिच्छा करनेवाले जानकर सबको समान दृष्टि से देखता है, वह महापुरुष देव-दुर्लभ
ऊँची गति को प्राप्त होता है | जिस काम को मनुष्य अपने लिये प्रतिकूल समझता है वह
काम दूसरे किसी भी प्राणी के लिये नहीं करना चाहिये | जो मनुष्य इसके विरुद्ध
व्यवहार करता है वह पाप का भागी होता है | मान-अपमान, सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय इनमे
जैसे अपने को संतोष और असंतोष होता है, वैसे ही दूसरो को भी होता होगा, यही समझकर व्यवहार
करे | जो मनुष्य हिंसा करता है, उसकी हिंसा होती है और जो
रक्षण करता है, उसकी दूसरो के द्वारा रक्षा होती है | अतएव हिंसा न करके सबकी
रक्षा करनी चाहिये | जो मनुष्य किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी हिंसा नहीं करता,
वह सत्पुरुषो के बतलाये हुए धर्म के समान संसार में प्रमाण रूप होता है |
(महाभारत)
शेष अगले ब्लॉग में !!!
नारायण नारायण
नारायण
भगवच्चर्चा,
हनुमानप्रसाद पोद्दार, गीताप्रेस गोरखपुर,
कोड ८२०, पेज २८८
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