जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, नवंबर 26, 2012

सदगुरु का महत्व

  
        अज्ञानान्धकार से हटाकर भगवत्स्वरूप पुण्य प्रकाश में पहुँचा देनेवाले गुरु का महत्व भगवान् से भी अधिक माना  जाता है l पता नहीं, सदगुरु की कृपा से कितने प्राणी दुराचार का त्याग करके नरकानल  से बच गए हैं और बच रहे हैं l गुरु भगवान् स्वरूप ही हैं l  ऐसे सदगुरु बड़े ही पुण्य बल और भगवान् की कृपा से प्राप्त  होते हैं l  सदगुरु के चरणों में बार-बार नमस्कार l
          'गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महान ईश्वर महादेव हैं, गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं; उन गुरु के चरणों में नमस्कार l ज्ञानांजन की सलाई के द्वारा अज्ञानरूप रतौंधी से अंधे हुए लोगों की आँखों को खोल देनेवाले गुरु के चरणों में नमस्कार l ' गुरु की महिमा अवर्णनीय है l जगत के समस्त विकारों का नाश करने के लिए ऐसे सदगुरु ही संजीवन-सुधा हैं l घोर पाप-ताप के प्रचण्ड प्रवाह में बहते हुए प्राणी की रक्षा के लिए स्वयं गुरुदेव ही सुदृढ़ जहाज हैं और वे ही उसके कर्णधार हैं l इसलिए गुरु का विरोध करना साधारण पाप ही नहीं , सीधा नरक को निमन्त्रण है l पर वस्तुतः यह महिमा शिष्य के अज्ञान एवं पाप-ताप आदि का हरण करने वाले सदगुरु की ही है l कामिनी-कांचन  के लोभी बाजारी गुरुओं की नहीं l  गोस्वामी महाराज कहते हैं -
    गुरु सिष बधिर अंध का लेखा l एक न सुनई एक नहिं देखा l l
    हरई सिष्य धन सोक न हरई  l सो गुर घोर नरक महुँ परई l l

         आजकल चारों  ओर गुरुओं की भरम भरमार है, कौन सदगुरु है, कौन नकली है - इसका पता लगाना सहज नहीं है l  इस स्थिति में किसी अंधे के हाथ में लकड़ी पकड़ा देने वाले अंधे की जो दुर्दशा होती है, वही इन गुरु-शिष्यों की होती है l  अतएव वर्तमान समय में गुरु करना बहुत ही जोखिम की चीज़ है l  भगवान् सहज जगदगुरु  हैं, उन्हीं का आश्रय ग्रहण करना चाहिये l

सुख-शान्ति का मार्ग [333]