अज्ञानान्धकार से हटाकर भगवत्स्वरूप पुण्य प्रकाश में पहुँचा देनेवाले गुरु का महत्व भगवान् से भी अधिक माना जाता है l पता नहीं, सदगुरु की कृपा से कितने प्राणी दुराचार का त्याग करके नरकानल से बच गए हैं और बच रहे हैं l गुरु भगवान् स्वरूप ही हैं l ऐसे सदगुरु बड़े ही पुण्य बल और भगवान् की कृपा से प्राप्त होते हैं l सदगुरु के चरणों में बार-बार नमस्कार l
'गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महान ईश्वर महादेव हैं, गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं; उन गुरु के चरणों में नमस्कार l ज्ञानांजन की सलाई के द्वारा अज्ञानरूप रतौंधी से अंधे हुए लोगों की आँखों को खोल देनेवाले गुरु के चरणों में नमस्कार l ' गुरु की महिमा अवर्णनीय है l जगत के समस्त विकारों का नाश करने के लिए ऐसे सदगुरु ही संजीवन-सुधा हैं l घोर पाप-ताप के प्रचण्ड प्रवाह में बहते हुए प्राणी की रक्षा के लिए स्वयं गुरुदेव ही सुदृढ़ जहाज हैं और वे ही उसके कर्णधार हैं l इसलिए गुरु का विरोध करना साधारण पाप ही नहीं , सीधा नरक को निमन्त्रण है l पर वस्तुतः यह महिमा शिष्य के अज्ञान एवं पाप-ताप आदि का हरण करने वाले सदगुरु की ही है l कामिनी-कांचन के लोभी बाजारी गुरुओं की नहीं l गोस्वामी महाराज कहते हैं -
गुरु सिष बधिर अंध का लेखा l एक न सुनई एक नहिं देखा l l
हरई सिष्य धन सोक न हरई l सो गुर घोर नरक महुँ परई l l
आजकल चारों ओर गुरुओं की भरम भरमार है, कौन सदगुरु है, कौन नकली है - इसका पता लगाना सहज नहीं है l इस स्थिति में किसी अंधे के हाथ में लकड़ी पकड़ा देने वाले अंधे की जो दुर्दशा होती है, वही इन गुरु-शिष्यों की होती है l अतएव वर्तमान समय में गुरु करना बहुत ही जोखिम की चीज़ है l भगवान् सहज जगदगुरु हैं, उन्हीं का आश्रय ग्रहण करना चाहिये l
सुख-शान्ति का मार्ग [333]
'गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महान ईश्वर महादेव हैं, गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं; उन गुरु के चरणों में नमस्कार l ज्ञानांजन की सलाई के द्वारा अज्ञानरूप रतौंधी से अंधे हुए लोगों की आँखों को खोल देनेवाले गुरु के चरणों में नमस्कार l ' गुरु की महिमा अवर्णनीय है l जगत के समस्त विकारों का नाश करने के लिए ऐसे सदगुरु ही संजीवन-सुधा हैं l घोर पाप-ताप के प्रचण्ड प्रवाह में बहते हुए प्राणी की रक्षा के लिए स्वयं गुरुदेव ही सुदृढ़ जहाज हैं और वे ही उसके कर्णधार हैं l इसलिए गुरु का विरोध करना साधारण पाप ही नहीं , सीधा नरक को निमन्त्रण है l पर वस्तुतः यह महिमा शिष्य के अज्ञान एवं पाप-ताप आदि का हरण करने वाले सदगुरु की ही है l कामिनी-कांचन के लोभी बाजारी गुरुओं की नहीं l गोस्वामी महाराज कहते हैं -
गुरु सिष बधिर अंध का लेखा l एक न सुनई एक नहिं देखा l l
हरई सिष्य धन सोक न हरई l सो गुर घोर नरक महुँ परई l l
आजकल चारों ओर गुरुओं की भरम भरमार है, कौन सदगुरु है, कौन नकली है - इसका पता लगाना सहज नहीं है l इस स्थिति में किसी अंधे के हाथ में लकड़ी पकड़ा देने वाले अंधे की जो दुर्दशा होती है, वही इन गुरु-शिष्यों की होती है l अतएव वर्तमान समय में गुरु करना बहुत ही जोखिम की चीज़ है l भगवान् सहज जगदगुरु हैं, उन्हीं का आश्रय ग्रहण करना चाहिये l
सुख-शान्ति का मार्ग [333]