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बुराई न देखकर प्रेम करना चाहिये

    
   सत्य कहूँ तो - आप जरा भी अत्युक्ति न मानियेगा - मैं स्वयं इतनी दुर्बलताओं से, इतने दोषों से भरा हूँ कि दूसरों के दोषों की आलोचना करना तो दूर की बात है, उनकी ओर देखने का भी अधिकारी नहीं हूँ l जन्म से अबतक असंख्य अपराध बने हैं, अब भी कर रहे हैं l ऊपर के साज और मन की यथार्थ स्थिति में कितना अंतर है, इसे अन्तर्यामी ही जानते हैं l यह सब जानते हुए भी दोषों से मुक्त नहीं हुआ जाता, यह कितना बड़ा अपराध है l इतने पर भी दयासागर अपनी दया से, अपनी अनोखी कृपा से, अपने सहज सौहार्द से कभी वंचित तो करते ही नहीं, अपनी कृपा सुधा के समुद्र में सदा डुबाया रखते हैं l  इस घृणित नरक-कीट पर कितनी कृपा करते है, इसकी सीमा ही नहीं है l  मैं आप से क्या बताऊँ ? मेरी तो आप से भी यही प्रार्थना है कि दूसरे क्या करते है, इस बात पर ध्यान मत दीजिये l
         तेरे  भाएँ   जो  करो,  भलो   बुरो  संसार l
         नरायन  तो बैठि कै  अपनी  भवन बुहार l l 

      एक महात्मा लिखते हैं - 'जितना हम सोचते हैं कि उस पुरुष में इतनी बुराई  है, उतनी ही बुराई हम उसे देते हैं l  जो जितना कमजोर होगा, उतना ही अधिक दूसरों के विचारों का उस पर प्रभाव पड़ेगा l  इस प्रकार हम जितना दूसरों को बुरा समझते हैं, उतना ही उनके प्रति बुराई  के भागी होते हैं l उसी प्रकार जब हम किसी मनुष्य को अच्छा , सच्चा ईमानदार  समझते हैं तब हम उसके जीवन पर बहुत ही अधिक प्रभाव डालते हैं l यदि हम उनसे प्यार करते हैं, जो हमारे संपर्क में आते हैं, तो वे भी हमसे प्यार करने लगते हैं l यदि आप चाहते हैं कि संसार आप से प्रेम करे तो आप पहले संसार के लोगों से प्रेम कीजिये l

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