जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

गुरुवार, नवंबर 29, 2012

बुराई न देखकर प्रेम करना चाहिये

    
   सत्य कहूँ तो - आप जरा भी अत्युक्ति न मानियेगा - मैं स्वयं इतनी दुर्बलताओं से, इतने दोषों से भरा हूँ कि दूसरों के दोषों की आलोचना करना तो दूर की बात है, उनकी ओर देखने का भी अधिकारी नहीं हूँ l जन्म से अबतक असंख्य अपराध बने हैं, अब भी कर रहे हैं l ऊपर के साज और मन की यथार्थ स्थिति में कितना अंतर है, इसे अन्तर्यामी ही जानते हैं l यह सब जानते हुए भी दोषों से मुक्त नहीं हुआ जाता, यह कितना बड़ा अपराध है l इतने पर भी दयासागर अपनी दया से, अपनी अनोखी कृपा से, अपने सहज सौहार्द से कभी वंचित तो करते ही नहीं, अपनी कृपा सुधा के समुद्र में सदा डुबाया रखते हैं l  इस घृणित नरक-कीट पर कितनी कृपा करते है, इसकी सीमा ही नहीं है l  मैं आप से क्या बताऊँ ? मेरी तो आप से भी यही प्रार्थना है कि दूसरे क्या करते है, इस बात पर ध्यान मत दीजिये l
         तेरे  भाएँ   जो  करो,  भलो   बुरो  संसार l
         नरायन  तो बैठि कै  अपनी  भवन बुहार l l 

      एक महात्मा लिखते हैं - 'जितना हम सोचते हैं कि उस पुरुष में इतनी बुराई  है, उतनी ही बुराई हम उसे देते हैं l  जो जितना कमजोर होगा, उतना ही अधिक दूसरों के विचारों का उस पर प्रभाव पड़ेगा l  इस प्रकार हम जितना दूसरों को बुरा समझते हैं, उतना ही उनके प्रति बुराई  के भागी होते हैं l उसी प्रकार जब हम किसी मनुष्य को अच्छा , सच्चा ईमानदार  समझते हैं तब हम उसके जीवन पर बहुत ही अधिक प्रभाव डालते हैं l यदि हम उनसे प्यार करते हैं, जो हमारे संपर्क में आते हैं, तो वे भी हमसे प्यार करने लगते हैं l यदि आप चाहते हैं कि संसार आप से प्रेम करे तो आप पहले संसार के लोगों से प्रेम कीजिये l

सुख-शान्ति का मार्ग [333]