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फ़रवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उन्नति का स्वरुप -7-

|| श्रीहरिः || आज की शुभ तिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण, तृतीया, गुरूवार , वि० स० २०६९ गत ब्लॉग से आगे..... जिस यूरोपकी उन्नति पर हम मोहित है, उसकी उन्नति के परिणाम में एक तो धन-जन और शान्ति-सुख का ध्वंशकारी महायुद्ध हो गया और दुसरेकी अन्दर-ही-अन्दर तैयारी हो रही है | पता नहीं, यह अन्दर का भयानक बिस्फोटक कब फूट उठे | विज्ञान में उन्नत जगत का वैज्ञानिक अविष्कार गरीबो का सर्वस्व नाश करने और अल्पकाल में ही बहुसंख्यक मनुष्यों की हत्या करने का प्रधान साधन बन रहा है | पेट्रीट्रयोजीम और देशप्रेम-पर-देशदलन का नामान्तरमात्ररह गया है | राष्ट्रसेवा पर-राष्ट्रके अहितचिंतन और संहारके रूप में बदल गयी है, उन्नति के मिथ्या मोह-पाश में आबद्ध मनुष्य आज रक्तपिपासु हिसंक पशु के भाँती एक-दुसरे को खा डालने के लिए कमर कसे तैयार है ! एक पाश्चात्य सज्जन से बड़े मार्मिक शब्दों में आज की उन्नत सभ्यता का दिग्दर्शन कराया है | वह कहते है “To be dignified is the glory of civilization, to suppress natural laughter, and smile instead, is grand; to Put the best side out and to conceal the natural; to pretend

उन्नति का स्वरुप -6-

|| श्रीहरिः || आज की शुभ तिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , द्वितीया , बुधवार , वि० स० २०६९ गत ब्लॉग से आगे.... . कुछ समय पूर्व डॉ० जान माट नामक अमेरिकन सज्जन मैसूर में होने वाले ‘ विश्व-छात्र-फेडरेशन ’ के सभापति बनकर अमेरिका से भारत में आये थे | उन्होंने महात्मा गाँधीजी से विभिन्न विषयों पर बात कीं | बातचीत के प्रसंगमें ही महात्मा जी ने कहा की ‘ मैं ईश्वरप्रार्थना करने को कहूँगा |’ इस पर डॉ० माट ने पूछा - ‘ यदि इससे उनको लाभ नही पंहुचा अर्थात उनकी प्रार्थना नहीं सुनी गयी तो ?’ म०- तब वह उनकी प्रार्थना ही नहीं कही जाएगी | वह तो उनकी मौखिक प्रार्थना हुई , प्रार्थना तो वह है जिसका असर हो | डॉ०- हमारे युवकोंके साथ यही तो कठिनाई है , विज्ञान और दर्शनशास्त्र की शिक्षाओ ने उनकी सारी धारणाओं को नष्ट कर दिया है | म०-   यह तो इसी कारण है की वे विश्वाश को बुद्धि की चेष्टा समझते है , आत्मा का अनुभव नहीं | बुद्धि हमलोगों को जीवनक्षेत्रमें कुछ दूर तक ले जा सकती है , परन्तु अन्त में वह मौके पर धोखा दे देती है | विश्वाश के कारणों की उत्पत्ति होती है | जि

उन्नति का स्वरुप -5-

॥ श्रीहरिः ॥ आज की शुभतिथि-पंचांग फाल्गुन कृष्ण , प्रतिपदा , मंगलवार , वि० स० २०६९ गत ब्लॉग से आगे..... एक सज्जन ने बहुत विद्याअध्ययन किया , शास्त्रों की खूब आलोचना की , धड़ा-धड़ परीक्षायें पास की , नाम के साथ उपाधियों के बहुत से अक्षर जुड़ गए , शास्त्रार्थो में बड़े-बड़े प्रसिद्ध पण्डितोंको परास्त किया , व्याखानोंसे आकाश गूंजा दिया , परन्तु विद्या का और विद्वान होनेपर प्रतिष्ठा का अभिमान बढ़ गया , अनेक प्रकार से तर्कजालो में फसकर उसका मन श्रद्धा और विश्वास से हीन हो गया | परमात्मा की कोई परवा नहीं , तर्क और पांडित्य से परमात्माकी सिद्धि-असिद्धि करने लगा | शास्त्र उसके मनोविनोद की सामग्री बन गए | ईश्वर की दिल्लगी उड़ाने लगा और पूरा यथेच्छारी बन गया | दूसरी और एक अशिक्षित ग्रामीण है , उसने एक भी परीक्षा पास नहीं की , उसके नाम से भी लोग अपरिचित है , अच्छी तरह बोलना भी नहीं जानता , परन्तु जिसका सरल हृदय विश्वास और श्रधा से भरा है , जो नम्रता से सबका सत्कार करता है , प्रेमपूर्वक परमात्मा का नाम स्मरण करता है , ईश्वर को जगत का नियन्ता समझकर पाप करने में डरता है , और परम सुहृदय

उन्नति का स्वरुप -4-

|| श्रीहरिः ||                          आज की शुभ तिथि-पंचांग                माघ शुक्ल पूर्णिमा , सोमवार , वि० स० २०६९                              गत ब्लॉग से आगे..... एक बड़े उच्च वर्ण का मनुष्य है , रोज घंटो नहाता है , शरीर को खूब मल-मल कर धोता है , तिलक और दिखावटी पूजा में घंटो बिता देता है , किसी को कभी स्पर्श नहीं करता , बड़ा नामी धर्मात्मा   कहलाता है , परन्तु अपने वर्ण या जाति के अभिमानवश राग-द्वेष से प्रेरित होकर दूसरे अपने-ही-जैसे मनुष्य से घृणा करता है , उसे बुरा-भला कहता हैं , सबको अपने से नीचा समझता   है | परमपिता परमात्मा की दूसरी सन्तान से द्रोह कर परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन करता है और जिसके मन में ढोंग समाया हुआ है | दूसरी और एक नीच वर्ण का मनुष्य है , परन्तु उसका हृदय भगवद्भक्ति से भरा है , वह बड़े प्रेम से रामनाम लेता है | अपना सब कुछ भगवान का समझता है , कभी किसी की बुराई नहीं करता और अपने को सबसे नीचा समझकर सबकी सेवा करना ही अपना धर्म समझता | बतलाइये , इनमे कौन यतार्थ उन्नति कर रहा है ? एक मनुष्य जिसे कोई बड़ा अधिकार प्राप्त है , स

उन्नति का स्वरुप -3-

|| श्रीहरिः ||                             आज की शुभतिथि-पंचांग                  माघ शुक्ल चतुर्दशी , रविवार , वि० स० २०६९                                           गत ब्लॉग से आगे..... एक मनुष्य बड़ा ईश्वरभक्त या देश भक्त कहलाता है , स्थान-स्थान में उपदेश देता फिरता है , आचार्य या नेताकी हैसीयत से सर्वत्र पूजा जाता है , जगह-जगह मान या मानपत्र प्राप्त करता है , हजारों-लाखों नर-नारी उसके दर्शन करने और भाषण सुनने को लालायित रहते है , पर यह सब कुछ वह राग-द्वेष से प्रेरित मान प्राप्त करने या धन कमाने के लिए कर रहा है | अपनी भडकीली वक्तृताओ से अल्पबुद्धि और अनुभवरहित लोगो को उतेजित और पथभ्रष्ट कर उनको इस लोक और परलोक में दु : खी बना देता है | दूसरी और एक सीधा-सादा ईश्वरभक्त व्यक्ति है , जिसको कोई पूछता-जानता भी नहीं , जो चुप-चाप अपने भगवान के सामने रोता है | जो अपने सामर्थ्यानुसार चुपचाप शरीर , मन , वाणी से , रोटीके एक सूखे टुकड़ेसे , चूलू भर पानीसे , बीमारी की हालत में सेवा से , सद्-व्यवहारसे और सच्चे सन्मार्गकी शिक्षा से जनता की सेवा करता है या एकान्त में बैठ कर