जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, फ़रवरी 25, 2013

उन्नति का स्वरुप -4-


|| श्रीहरिः ||
                        आज की शुभ तिथि-पंचांग
              माघ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार, वि० स० २०६९
                            

गत ब्लॉग से आगे.....
एक बड़े उच्च वर्ण का मनुष्य है, रोज घंटो नहाता है,शरीर को खूब मल-मल कर धोता है, तिलक और दिखावटी पूजा में घंटो बिता देता है, किसी को कभी स्पर्श नहीं करता, बड़ा नामी धर्मात्मा  कहलाता है, परन्तु अपने वर्ण या जाति के अभिमानवश राग-द्वेष से प्रेरित होकर दूसरे अपने-ही-जैसे मनुष्य से घृणा करता है, उसे बुरा-भला कहता हैं, सबको अपने से नीचा समझता  है | परमपिता परमात्मा की दूसरी सन्तान से द्रोह कर परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन करता है और जिसके मन में ढोंग समाया हुआ है | दूसरी और एक नीच वर्ण का मनुष्य है, परन्तु उसका हृदय भगवद्भक्ति से भरा है, वह बड़े प्रेम से रामनाम लेता है | अपना सब कुछ भगवान का समझता है, कभी किसी की बुराई नहीं करता और अपने को सबसे नीचा समझकर सबकी सेवा करना ही अपना धर्म समझता | बतलाइये, इनमे कौन यतार्थ उन्नति कर रहा है ?

एक मनुष्य जिसे कोई बड़ा अधिकार प्राप्त है, सैकड़ो मनुष्य जिससे सलामी भरते है, हजारो जिससे कांपते है और जी हुजुर’ ‘जी सरकारके नाम से संबोधन करते है; पर जो राग-द्वेषवश अपने अधिकार का दुरूपयोग करता है, स्वार्थवश अन्याय करता है, न्याय-अन्याय का विचार त्यागकर मनमानी करता है और पद-गौरवमें पागल होकर हर किसी का आपमान कर बैठता है | दूसरी और एक मनुष्य जिसको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, जो बात-बात में दुत्कारा जाता है पर जिसका मन स्वच्छ सलिल की भाँती निर्मल है, जिसके हृदय में हिंसा-द्वेष को स्थान नहीं है, जो ईश्वर की भक्ति करता है और उससे सबका भला मानता है | बतलाइये, इनमे कौन सा उन्नति का पथिक है? ....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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