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उन्नति का स्वरुप -4-


|| श्रीहरिः ||
                        आज की शुभ तिथि-पंचांग
              माघ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार, वि० स० २०६९
                            

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एक बड़े उच्च वर्ण का मनुष्य है, रोज घंटो नहाता है,शरीर को खूब मल-मल कर धोता है, तिलक और दिखावटी पूजा में घंटो बिता देता है, किसी को कभी स्पर्श नहीं करता, बड़ा नामी धर्मात्मा  कहलाता है, परन्तु अपने वर्ण या जाति के अभिमानवश राग-द्वेष से प्रेरित होकर दूसरे अपने-ही-जैसे मनुष्य से घृणा करता है, उसे बुरा-भला कहता हैं, सबको अपने से नीचा समझता  है | परमपिता परमात्मा की दूसरी सन्तान से द्रोह कर परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन करता है और जिसके मन में ढोंग समाया हुआ है | दूसरी और एक नीच वर्ण का मनुष्य है, परन्तु उसका हृदय भगवद्भक्ति से भरा है, वह बड़े प्रेम से रामनाम लेता है | अपना सब कुछ भगवान का समझता है, कभी किसी की बुराई नहीं करता और अपने को सबसे नीचा समझकर सबकी सेवा करना ही अपना धर्म समझता | बतलाइये, इनमे कौन यतार्थ उन्नति कर रहा है ?

एक मनुष्य जिसे कोई बड़ा अधिकार प्राप्त है, सैकड़ो मनुष्य जिससे सलामी भरते है, हजारो जिससे कांपते है और जी हुजुर’ ‘जी सरकारके नाम से संबोधन करते है; पर जो राग-द्वेषवश अपने अधिकार का दुरूपयोग करता है, स्वार्थवश अन्याय करता है, न्याय-अन्याय का विचार त्यागकर मनमानी करता है और पद-गौरवमें पागल होकर हर किसी का आपमान कर बैठता है | दूसरी और एक मनुष्य जिसको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, जो बात-बात में दुत्कारा जाता है पर जिसका मन स्वच्छ सलिल की भाँती निर्मल है, जिसके हृदय में हिंसा-द्वेष को स्थान नहीं है, जो ईश्वर की भक्ति करता है और उससे सबका भला मानता है | बतलाइये, इनमे कौन सा उन्नति का पथिक है? ....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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