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परमार्थ की मन्दाकिनीं -21-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, त्रयोदशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -जिस मानव जीवनमें मनुष्य सबका हित करके मन-वाणी से सबको सुख पहुंचाकर भगवानके सन्मार्ग पर चलता है और जगतमें दैवी सम्पदाका विकास करता तथा अन्तमें भजन में लगकर भगवत-प्राप्ति कर लेता – उस दुर्लभ मानव-जीवन को परदोष-दर्शन तथा पर-निन्दामें तथा अपनी मिथ्या प्रशंसा में लगाकर अपने जीवन को तथा दूसरोंके जीवनको भी इस लोक तथा परलोकमें नरक-यंत्रणा-भोगका भागी बना देना – कितना बड़ा प्रमाद और पाप है ! इससे बड़ी सावधानी के साथ सबको बचना चाहिए |

 

याद रखो -मनुष्य का परम कर्तव्य है – भगवानके गुणोंका, उनके नामका, उनकी लीला का श्रवण, कथन तथा कीर्तन एवं स्मरण करनेमें ही जीवन को लगाना | बुद्धिमान मनुष्यको तो दूसरोंके न तो गुण-दोषका चिंतन करना चाहिए, न देखना चाहिए और न उनका वर्णन ही करना चाहिए | उसे तो भगवद-गुण चिंतनसे ही समय नहीं मिलना चाहिए | पर यदि देखे बिना न रहा जाए तो दूसरोंके गुण देखने चाहिए और ढूँढ-ढूँढकर अपने दोष देखने चाहिए | न रहा जाए तो दूसरों के सच्चे गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए और अपने दोषोंकी साहस के साथ निंदा | वास्तव में परमार्थ की दृष्टि से तो यह सब कुछ न करके भगवत-चिन्तन तथा भगवन्नाम-गुणका कथन-कीर्तन-चिंतन ही करना चाहिए |

 

याद रखो -आज ही यह प्रतिज्ञा करनी है की मैं अबसे कभी भी न पर-दोष देखूँगा और न किसीकी निंदा-चुगली ही करूँगा | अपना अधिक-से-अधिक मन तथा समय भगवानके नाम-गुण-स्वरुप-चिंतन में ही लगाऊंगा और उन्हीं का कीर्तन करूँगा |.... शेष अगले ब्लॉग में.         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     

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