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भगवती शक्ति -2-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण, द्वितिया श्राद्ध, शनिवार, वि० स० २०७०
परिणामवाद
गत ब्लॉग से आगे....असल में वह एक महाशक्ति ही परमात्मा है जो विभिन्न रूपों में  विविध लीलाएं करती है | परमात्मा के पुरुषवाचक सभी स्वरुप इन्हीं अनादी, अविनाशिनी, अनिर्वचनीय, सर्वशक्तिमयी, परमेश्वरी आद्या महाशक्ति के ही है | यही महाशक्ति अपनी मायाशक्ति को जब अपने अन्दर छिपाये रखती है, उससे कोई क्रिया नहीं करती, तब निष्क्रिय, शुद्ध ब्रह्म कहलाती है | यही जब उसे विकासोन्मुख करके एकसे अनेक होने का संकल्प करती है, तब स्वयं ही पुरुषरूप से मानो अपनी प्रकर्तिरूप योनी में संकल्प द्वारा चेतनरूप बीज स्थापन करके सगुण, निराकार परमात्मा बन जाती है |
 
इसीकी अपनी शक्तिसे गर्भाशय में वीर्यस्थापनसे होनेवाले विकार की भांति उस प्रकृति से क्रमश: सात विकृतिया होती है (महतत्व- समष्टि बुद्धि, अहंकार और सूक्ष्म पञ्चतन्मात्राए  मूल प्रकृति के विकार होने से इन्हें विकृति कहते है; परन्तु इनसे अन्य सोलह  विकारों की उत्पति होने के कारण इन सात समुदायों को विकृति भी कहते है ) फिर अहंकार से मन और दस (ज्ञान कर्मरूप) इन्द्रियाँ और  पञ्चतन्मात्राओ से पञ्च महाभूतो की उत्पत्ति होती है | (इसलिए इन दोनों के समुदाय का नाम प्रकृति-विकृति है | मूल प्रकृति के सात विकार, सप्तधा विकाररूपा प्रकृति से उत्पन्न सोलह विकार और स्वयं मूल प्रकृति ये कुल मिलकर चौबीस तत्व है ) यों वह महाशक्ति ही अपनी प्रकृति सहित चौबीसतत्वों के रूप में यह स्थूल संसार बन जाती है और जीवरूप से स्वयं पचीसवे तत्वरूप में प्रविष्ट होकर खेल खेलती है |
 
चेतन परमात्मरूपिणी महाशक्ति के बिना जड प्रकृति से यह सारा कार्य कदापि सम्पन नहीं हो सकता | इस प्रकार महाशक्ति विश्वरूप विराट पुरुष बनती है और इस सृष्टीके निर्माण में स्थूल निर्माता प्रजापति के रूप में आप ही अंशावतार के भाव से ब्रह्मा और पालनकर्ता के रूप में विष्णु और संघारकर्ता के रूप में रूद्र बन जाती है और ये ब्रह्मा, विष्णु, शिवप्रभर्ती अंशावतार भी किसी कल्प में दुर्गारूप से होते है, किसीमें महाविष्णुरूप से, किसी में महाशिवरूप से, किसीमें श्रीराम रूप से और किसी में श्रीकृष्ण रूप से |
 ... शेष अगले ब्लॉग में....       
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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