|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
नवमी श्राद्ध, शनिवार , वि० स० २०७०
शक्ति की शरण
गत ब्लॉग से आगे....यह महाशक्ति ही सर्वकारणरूप
प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण भी है, यही मायाधीश्वरी है, यही सृजन-पालन-संघारकारिणी
आद्या नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और
महेश्वर होती है | परा और अपरा दोनों प्रक्रतिया इन्ही की है अथवा यही दो प्रकृतियों
के रूप में प्रकाशित होती है | इन्ही में द्वैतअद्वैत दोनों का समावेश है | यही
वैष्णवोंकी श्री नारायण और महालक्ष्मी, श्रीराम और सीता, श्रीकृष्ण और राधा; शैवों
की श्रीशंकरऔर उमा, गन्पत्योंकी श्रीगणेश और रिद्धि-सिद्धि, सोरो की श्रीसूर्य और
उषा, ब्र्ह्वादियों की शुद्ध ब्रह्म और ब्रह्म विद्या है और साक्तों की महादेवी है
| यही पन्चमहाविद्या, दस महाविद्या, नव दुर्गा है | यही अन्नपूर्णा, जगादात्री,
कात्यायनी, ललिताम्बा है | यही शक्तिमान है, यहीं शक्ति है, यहीं नर है, यहीं नारी
है, यही माता धाता, पितामह है; सब कुछ यही है ! सबको सर्वोक्त भाव से इन्ही के शरण
में जाना चाहिये |
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जो श्रीकृष्ण की उपासना करते है,
वे भी इन्हीं की करते है | जो श्रीराम, शिव या गणेशरूप की उपश्ना करते है, वे भी
इन्ही की करते है | और इसी प्रकार जो श्री, लक्ष्मी, विद्या, काली, तारा, षोडशी
आदि रूपों में उपासना करते है, वे भी इन्ही की करते है | श्रीकृष्ण ही काली है,
माँ काली ही श्री कृष्ण है | इसलिए जो जिस रूप में उपासना करते हो उन्हें उस
उपासना को छोड़ने की कोई आवस्यकता नहीं | हाँ, इतना अवश्य निश्चय कर लेना चाहिये की
‘मैं जिन भगवान या भगवती की उपासना कर रहा हूँ, वही सर्वदेवमय और सर्वरूपमय है;
सर्वशक्तिमान और सर्वोपरी है | दूसरों के
सभी ईस्टदेव इन्ही के विभिन्न स्वरुप है
|’ हाँ, पूजा में भगवान के अन्यान्य रूपों का कहीं विरोध हो या उनसे द्वेषभाव हो तो उसे जरुर निकाल
देंना चाहिये; साथ ही किसी तामसिक पद्दतिका अवलम्बन किया हुआ हो तो उसे भी अवश्य
ही छोड़ देना चाहिये |... शेष अगले ब्लॉग में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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