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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, अष्टमी, मंगलवार,
वि० स० २०७०
एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -१-
गत
ब्लॉग से आगे ... ११.
याद रखो
-परमात्मा एक है और वही अनंत रूपोंमें अभिव्यक्त है । जब तक उन
परमात्माका बाहर-भीतर, सर्वत्र-सदा साक्षात्कार नहीं होता, तब तक कभी भी सदा
रहनेवाली वास्तविक सुख-शान्ति नहीं मिल सकती ।
याद रखो -जैसे एक ही अग्नि अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें
कहीं कोई भेद नहीं है, पर जब वह किसी आधार-वस्तुमें व्यक्त होकर प्रज्वलित होती
है, तब वह उसी वस्तुके आकारका दृष्टिगोचर होने लगती है; वैसे ही समस्त प्राणियोंके
अंतर-आत्मा रूपमें विराजित अन्तर्यामी परमात्मा सबमें समभावसे व्याप्त हैं; उनमें
कहीं कोई भेद नहीं है, तथापि वे एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके अनुरूप विभिन्न
रूपोंमें दिखाई देते हैं । पर वे उतने ही नहीं हैं, उन सबके
बाहर भी अनंत रूपोंमें स्थित हैं ।
याद रखो -जैसे एक ही
अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कोई भेद नहीं है; परन्तु
व्यक्त होकर विभिन्न वस्तुओंके संयोगसे वह उन्हींके अनुरूप गति तथा शक्तिमान दिखाई
देता है, वैसे ही समस्त प्राणियोंके अन्तरात्मा परमात्मा एक होते हुए ही उन-उन
प्राणियोंके सम्बन्धसे विभिन्न पृथक-पृथक गति और शक्तिवाले दिखाई देते हैं, उन
सबके बाहर भी अनंत-असीम-असंख्य विलक्षण रूपोंमें स्थित हैं ।.. शेष अगले
ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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