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भगवान् की उपासनाका यथार्थ स्वरुप -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष कृष्ण, दशमी, गुरूवार, वि० स० २०७०


भगवान् की उपासनाका यथार्थ स्वरुप -१-

गत ब्लॉग से आगे ... १२. याद रखो -समस्त विश्वके सम्पूर्ण प्राणी भगवत-स्वरुप हैं, यह जानकार सबको बाहरकी स्थितिके अनुसार हाथ जोड़कर प्रणाम करो या मनसे भक्ति-पूर्वक नमन करो किसीभी प्राणीसे कभी द्वेष मत रखो किसीको भी कटु वचन मत कहो, किसीका भी मन मत दुखाओ और सबके साथ आदर, प्रेम तथा विनयसे बरतो यह भगवान् के समीप बैठने की एक उपासना है

 याद रखो -तुम्हारे पास विद्या-बुद्धि, अन्न-धन, विभूति-संपत्ति है – सब भगवानकी सेवाके लिए ही तुम्हें मिली है उनके द्वारा तुम गरीब-दुखी, पीड़ित-रोगी, साधू-ब्राह्मण, विधवा-विद्यार्थी, भय-विषादसे ग्रस्त मनुष्य, पशु, पक्षी, चींटी – सबकी यथायोग्य सेवा करो – उन्हें भगवान् समझकर निरभिमान होकर उनकी वास्तु उनको सादर समर्पित करते रहो यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है

 याद रखो -तुम्हें जीभ मिली है – भगवान् का दिव्य मधुर नाम-गुण-गान-कीर्तन करनेके लिए और कान मिले हैं – भगवान् का मधुर नाम-गुण-गान-कीर्तन सुननेके लिए अतएव तुम जीभको निंदा-स्तुति, वाद-विवाद, मिथ्या-कटु, अहितकर-व्यर्थ बातोंसे बचाकर नित्य-निरंतर भगवान् के नाम-गुण-गान-कीर्तनमें लगाए रखो और कानोंके द्वारा बड़ी उत्कंठाके साथ उल्लास-पूर्वक सदा-सर्वदा भगवान् के नाम-गुण-गान-कीर्तनको सुनते रहो यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है .... शेष अगले ब्लॉग में.         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!      

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