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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, द्वादशी, शनिवार,
वि० स० २०७०
प्रार्थना -१-
हे प्रभो !
मैं अधम हूँ, नीच हूँ, पामर हूँ, पापों की कालिमा से कलंकित हूँ । इतना सब
होते हुए भी हूँ तो तुम्हारा ही न ? इस सत्य को, हे सत्य ! तुम अस्वीकार नहीं कर
सकते । बस, इसी सत्य के आधार पर मैं तुम्हे यह प्रार्थना करता हूँ की तुम मेरे मन
को ऐसा बना दो जिसमे वह इस सत्य को सदा स्मरण रखे । क्या इस पतितकी, हे पतितपावन !
इंतनी विनती भी नहीं सुनोगे ?
* * * * * * * * *
हे प्रभो !
मैं तुमसे विमुख हूँ, संसार के जाल में फसा हूँ, भूलकर भी कभी तुम्हारी और चित
नहीं लगाता । परन्तु हे विश्वरूप ! मेरे लीलामय ! यह तो सत्य ही है की सब कुछ
तुम्ही हो, फिर चाहे मैं किसी और देखूँ, किसी और जाऊँ, किसी में मन लगाऊँ, तुम्ही
को तो देखता हूँ, तुम्हारी और ही तो जाता हूँ, तुम्ही में तो मन लगाता हूँ । बस,
यही प्रार्थना है की इस समझ को प्रतिक्षण मेरे ह्रदय में जगाये रखो मेरे स्वामी !...शेष अगले
ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, प्रार्थना पुस्तक से,
पुस्तक कोड
३६८, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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