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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, त्रयोदशी, रविवार,
वि० स० २०७०
प्रार्थना -२-
गत ब्लॉग से आगे...
हे प्रभो ! मैं अपनी झूठी ऐंठमें अकड़ा रहता हूँ और अपने को बलवान, धनवान,
संतातिवान, जनवान, विद्वान और बुद्धिमान मानता हूँ । परन्तु हे सर्वेश्वर ! यह तो
सत्य ही है की मुझमे जो कुछ भी है सो सब तुम्हारा ही तो है । मैं भी तुम्हारी
सम्पति हूँ । हे सर्वलोकमहेश्वर ! बस, इस सत्य सिद्धांत को मैं कभी न भूलूँ, यह
वरदान दे दो मेरे मालिक !
* * * * * * * * *
हे प्रभो ! लोग कहते हैं जगत सब स्वप्नवत है, तुम्हारी माया से बिना ही हुए यह सब कुछ दीखता
है ; परन्तु माया या स्वप्न पुरुष के आश्रित होने के कारण यह तो, हे सत्यसंकल्प !
सत्य ही है न की सारा प्रपञ्च तुम्हारे संकल्प पर ही स्थित है । प्रपंचमें ही मैं
भी हूँ, इसलिये मैं भी तुम्हारे संकल्प में हूँ । मेरे सरीखा कौन भग्यवान होगा,
जिसे तुम अपने मन में रखते हो । बस, प्रभों ! मुझे तो अपने संकल्प में ही रखों और
ऐसा बना दो की मैं सब कुछ भूलकर-दुनिया की सारी सुधि भुलाकर केवल यही याद रखूं की
मैं तुम्हारे संकल्प में ही स्थित हूँ ।...शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, प्रार्थना पुस्तक से, पुस्तक कोड ३६८, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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