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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष शुक्ल, तृतीया, गुरूवार,
वि० स० २०७०
प्रार्थना -६-
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हे प्रभो ! जैसे चन्द्रकान्तमणि चन्द्रकिरणोंका योग प्राप्त
करते ही द्रवित होकर रस बहाने लगती है, वैसे ही हे अनन्त सुधाकरों को सुधा दान
देने वाले सुधासागर ! मेरा हृदय चन्द्रकान्तमणि के सामान बना दो, जो तुम्हारे
गुणनामरुपी सुधाभरी शशि-किरणों का संयोग पाते ही द्रवित होकर बहने लगे !
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हे प्रभों ! चुम्बक उसी लोहे को अपनी और खींचता है, जो निखालिस
होकर उसके सामने आता है । आप भी हे
कृपासागर ! समस्त अभिमानों के मिश्रणसे रहित कर दीनहीन निखालिस लोहा बना दो, जो
तुम्हारे आकर्षक कृष्णनामचुम्बक को पाते ही दौड़कर उसमे सदा के लिए चिपट जाय ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, प्रार्थना पुस्तक से, पुस्तक कोड ३६८, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण
!!! नारायण !!! नारायण !!!
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