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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी -४-
गत ब्लॉग
से आगे....वास्तव में भिखारी होना, नम्र बनना, निरभिमान होना जितना
कठिन है, भगवान् को प्राप्त करना उतना कठिन नही है । एक सच्ची घटना है । एक आधुनिक सभ्यताभिमानी बाबु साहब
बीमार हुए, बहुत तरह से इलाज करवाया गया, परन्तु कुछ भी लाभ नही हुआ । एलोपैथिक,
होम्योपैथिक , वैद्यक, हकीमी आदि सभी तरह के इलाज हुए परन्तु रोग दूर नही हुआ ।
अन्त में श्रद्धालु गृहिणी की सलाह से देवकार्य करना निश्चय हुआ । पंडितजी ने
सूर्य की उपासना बतलाई ।
कहा की ‘बाबु जी प्रतिदिन प्रात:काल सूर्यनारायण को
साष्टांग प्रणाम करके अर्ध्य दे ।’ बाबु ने कहाँ, ‘साष्टांग प्रणाम कैसा होता है,
मैं नही जानता, आप दिखला दे ।’ पंडितजी को
तो अभ्यास था ही, उन्होंने पृथ्वी पर लेटकर साष्टांग प्रणाम की विधि बतला दी । इस
प्रणाम का ढंग देखकर बाबु बड़े असमजंसमें पड़ गए, परन्तु क्या करे, बड़े कष्ट से
घुटने नीचे किये, माथा भी कुछ झुकाया परन्तु जमीन पर पड़ने की कल्पना आते ही वे
दु:खी हो गए ।
उन्होंने उठकर पंडितजी से कहाँ-‘महाराज ! बीमारी दूर हो या न हो,
मुझसे ऐसा बेढंगा प्रणाम नही होगा ।’ सारांश यह की जिसके शरीर-मन-प्राण अभिमान के
विष से जर्जरित है वह देवता के चरणों में अपना सर क्यों झुकायेगा ? जगत में जो
पार्थिव अभिमान फूट निकला है । महारूद्र के संहार-शूल का दर्शन किये बिना वह
मुरझायेगा नही । ऐसे अभिमान का त्याग करना जितना कठिन है, भगवान को प्राप्त करना
उतना कठिन नहीं है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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